मॉनसून आने के साथ ही प्रवासी साइबेरियन पक्षियो का हुजूम पहुंच चुका हैं. माना जाता है कि साइबेरिया (रूस)में जब बर्फ बारी शुरू होती है और सबकुछ बर्फ से ढकने लगता है, तब प्रजनन एवं मौसम का आनन्द लेने वहां के स्थानीय साइबेरियन पंक्षी मॉनसून के भारत पहुंचने से पहले हीं भारत में प्रवेश कर जाते हैं जो जाड़े की दस्तक के बाद हीं अपने घर वापस लौटते हैं.
इस बीच भारत की आबो हवा में इस तरह रम जाते हैं कि सफेद रंग के बड़े चोंच वाले यह पक्षी लौटते वक्त इतने मैले हो जाते है कि इनके उजले रंग पर ग्रहण लग जाता हैं. ये भारत में अपने प्रवास के दरम्यान अपने साथी पक्षियों के साथ मिल कर प्रजनन को प्राथमिकता देते हैं और अपने परिवार को आगे बढ़ाते हैं जो लौटते वक्त दो पक्षियों के साथ उनका भरा पूरा परिवार होता है जिसकी संख्या 2 और उससे अधिक भी होती है.
ये पक्षी यहां आते हीं जलधारा में विचरण शुरू कर देते है. इनकी उड़ान मोहक और तैरना लोगों को रास आता है. ये पक्षी हजारों मील की लंबी उड़ान के बाद यहां तक पहुंचते हैं. इनके यहां तक पहुंचने का कारण है अपनी प्रजाति को बचाए रखना और वंश वृद्धि करना, मतलब साफ है कि ये यहां तक सिर्फ जीवित रहने और प्रजनन करने के लिए ही आते हैं. लौटते हैं तो इनके साथ ढेरों नवजात पक्षी होते हैं जो इनकी कभी न खत्म होने वाले ऐतिहासिक तथ्य का पीढ़ीगत हिस्सा होते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार इनमें कई प्रजातियों के पक्षी होते हैं जिसमें अधिसंख्य के रंग उजले हीं होते है. लेकिन इनके बच्चे हल्के मटमैले ही होते हैं जैसे -जैसे इनका आकर बड़ा होता है वैसे वैसे इनके रंग उजले होने लगते हैं.
विज्ञान की नजरों में इनका परिचय- पक्षियों के प्रवास पर ध्यान दिलाते हुए डॉ आलोक भारती ने बताया कि किसी विशेष मौसम में भौगोलिक बदलाव को माइग्रेशन नाम दिया गया है. यह लैटिन शब्द ‘माइग्रेटस’ से आया है, जिसका मतलब होता है बदलाव.
हिंदी में इसे प्रवास कहा जाता है. प्रवास का अर्थ है, यात्रा पर जाना या दूसरे स्थान पर जाना लेकिन उनका यह प्रवास केवल अपने देश में सीमित नहीं होता, बल्कि दूर-दूर के देशों तक होता है. जहां भी इन्हें अपने अनुकूल मौसम और भोजन मिल जाए. कई पक्षी तो ऐसे हैं, जो कई माह का सफर तय कर दूसरे देश पहुंचते हैं. हालांकि माइग्रेशन को आसान बनाने के लिए ये पक्षी अपने शरीर को अनुकूलित कर लेते हैं पर फिर भी इन्हें अपने इस सफर में कईं चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
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