बिहार में 300 से अधिक निधि कंपनियों के पास आम लोगों के 200 करोड़ से अधिक रुपए हैं जमा,डूबने का सता रहा डर

बिहार में अधिकतर निधि कंपनियां ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रही है. ये स्थानीय बेरोजगार युवकों को कमीशन पर रखती हैं. उन्हें छोटी-छोटी राशि जमा करवाने के लिए प्रेरित करती हैं. शुरुआत में लोगों को जमा पर अच्छा रिटर्न भी देती हैं और जब जमा राशि अधिक हो जाती है, तो एक दिन चंपत हो जाती हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | November 21, 2022 7:56 AM

कैलाशपति मिश्र

पटना. राज्य में 300 से अधिक निधि कंपनियां भोली-भाली जनता से अवैध रूप से पैसे जमा ले रही हैं. इन कंपनियों ने अब तक 200 करोड़ रुपये से अधिक राशि लोगों से ली है. हालांकि, केंद्र सरकार ने ऐसी कंपनियों को जमा लेने की अनुमति नहीं दी है, इस कारण लोगों के जमा पैसों के डूबने की आशंका है. निधि कंपनियों का जाल पूरे राज्य में फैला हुआ है. मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्र ने राज्य सरकार को इन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया है. केंद्र से मिले निर्देश के बाद राज्य सरकार के वित्त विभाग ने सभी जिलाधिकारियों को इन निधि कंपनियों का सर्वे कर कार्रवाई करने को कहा है.

कई जिलों में लोगों के पैसे लेकर फरार हो चुकी हैं ऐसी कई कंपनियां

मालूम हो कि इन कंपनियों का निबंधन कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) में ऑनलाइन होता है. निधि (संशोधन) अधिनियम 2019 के तहत निधि कंपनियों को एनडीएच-4 फॉर्म भरना अनिवार्य होता है, ताकि यह पता चल सके कि वे केंद्र सरकार के नियम-कायदों का अक्षरश: पालन कर रही हैं. यह एक तरह से घोषणापत्र है. इसमें कंपनी के सभी सदस्यों का नाम और पता रहता है. एमसीए में पंजीकृत वैसी निधि कंपनियां, जिन्होंने एनडीएच-4 फॉर्म नहीं भरा है, वे जमा नहीं ले सकती हैं. सूत्रों का कहना है कि बिहार में संचालित 321 कंपनियों ने एनडीएच-4 फॉर्म नहीं भरे हैं, लेकिन धड़ल्ले से लोगों का पैसा जमा ले रही हैं. ऐसी कंपनियों में पैसा जमा करना खतरे से खाली नहीं है.

ज्यादातर कंपनियां ग्रामीण इलाकों में हैं सक्रिय

अधिकतर निधि कंपनियां ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रही है. ये स्थानीय बेरोजगार युवकों को कमीशन पर रखती हैं. उन्हें छोटी-छोटी राशि जमा करवाने के लिए प्रेरित करती हैं. शुरुआत में लोगों को जमा पर अच्छा रिटर्न भी देती हैं और जब जमा राशि अधिक हो जाती है, तो एक दिन चंपत हो जाती हैं. पिछले कुछ सालों के दौरान बक्सर,समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर जिलों में ऐसी ही कई फर्जी कंपनियां गरीबों की जमा पूंजी लेकर भाग चुकी हैं.

निधि कंपनियां क्या होती हैं और कैसे जुटाती हैं धन

निधि कंपनियां एक प्रकार की पब्लिक लिमिटेड कंपनियां हैं. इनको स्थायी निधि, लाभ निधि, म्युचुअल बेनिफिट फंड और म्यूचुअल बेनिफिट कंपनी के रूप में भी जाना जाता है. ऐसी कंपनियां केवल शेयरधारक-सदस्यों के बीच ही लेन-देन कर सकती हैं. आम जनता से सीधे पैसे नहीं ले सकतीं. निधि कंपनी शुरू करने के लिए 10 लाख की न्यूनतम पूंजी चाहिये. एक साल में 200 सदस्य होने चाहिए. इन्हें कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय से लाइसेंस िमलता है और मंत्रालय ही रेगुलेट करता है. इनको रिजर्व बैंक से मंजूरी नहीं चाहिए.

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सबसे ज्यादा 85 निधि कंपनियां हैं पटना जिले में

राज्य के लगभग सभी जिलों में निधि कंपनियां काम कर रही हैं. इनमें सबसे ज्यादा 85 निधि कंपनियां पटना जिले में हैं. दूसरे स्थान पर समस्तीपुर, तीसरे पर मुजफ्फरपुर और चौथे स्थान पर वैशाली है. कंपनी ऑफ रजिस्ट्रार कार्यालय के सूत्रों के अनुसार अधिकतर कंपनियों ने अपना पता गलत दिया हुआ है. यह खुलासा सर्वे के दौरान हुआ है.

हाइकोर्ट कर चुका है जवाब-तलब

बिहार में कथित तौर पर अनधिकृत रूप से चल रही निधि कंपनियों के सिलसिले में पटना हाइकोर्ट भारतीय रिजर्व बैंक व केंद्र सरकार के कॉरपोरेट मामले के सचिव से जवाब तलब कर चुका है. न्यायमूर्ति संदीप कुमार की एकलपीठ ने प्रेम कुमार सैनी व अन्य की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त आदेश के साथ आरबीआइ (पटना क्षेत्र) के मार्केटिंग इंटेलीजेंस अफसर व केंद्र सरकार की तरफ से कम्पनियों के निबंधक को भी इस मामले की अगली सुनवाई में हाजिर होने का निर्देश दिया है. सुनवाई के दौरान कोर्ट को जानकारी दी गई कि सूबे में चल रही निधि कम्पनियों का निबंधन सिर्फ कम्पनी के तौर पर हुआ है. इनको “निधि’ के रूप में जो मान्यता मिलनी चाहिए, उसके बारे में कोई जानकारी कार्यालय के पास नहीं है.

धड़ल्ले से हो रहा ऑनलाइन निबंधन

राज्य की तरफ से अधिवक्ता अजय ने कोर्ट को सैकड़ों निधि कंपनियों की एक फेहरिस्त को सौंपी, जिन्हें भारत सरकार से निधि का दर्जा मिला है या नहीं इसका खुलासा नहीं है. ऑनलाइन निबंधन के जरिये धड़ल्ले से कंपनियों का निबंधन हो रहा है, जिसके आगे ये कम्पनियां निधि शब्द लगा कर व्यवसाय कर रही हैं.

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