अंबर,पटना. कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन के कारण सरकार को करोड़ों का राजस्व देने वाला कोचिंग सेक्टर बदहाल है. पिछले आठ महीनों से भी ज्यादा समय से राज्य के 7200 से ज्यादा कोचिंग संस्थानों पर ताला लटका है.
इसकी वजह से इनसे जुड़े करीब 9.30 लाख टीचिंग व नन टीचिंग स्टाफ सहित उनके परिवार के सामने आजीविका का संकट हो गया है. सिर्फ पटना शहर के 50 प्रतिशत से ज्यादा कोचिंग संस्थान बंद हो चुके हैं, जिनको दोबारा शुरू करना काफी मुश्किल होगा.
कोचिंग एसोसिएशन ऑफ बिहार की मानें तो कोचिंग संस्थान बंद होने की बड़ी वजह मकान का किराया और टीचिंग व नॉन टीचिंग स्टाफ की सैलरी है. आमद नहीं होने की वजह से इनका भुगतान संभव नहीं हो पा रहा.
एक अनुमान के तहत शहर में किराये के मकान में चल रहे एक कोचिंग संस्थान 50 रुपये प्रति स्वॉयर फुट के हिसाब से किराया देते हैं. इस पर एक कोचिंग संस्थान को महीने का करीब दो से तीन लाख रुपये केवल किराया देना पड़ता है.
इसके अलावा कोचिंग से जुड़े टीचिंग व नॉन टीचिंग स्टाफ पर एक कोचिंग संस्थान को तकरीबन एक से तीन लाख रुपये देना होता है. कोरोना के कारण बंद पड़े कोचिंग संस्थानों के सामने इतनी मोटी रकम अदा करने का कोई दूसरा विकल्प नहीं था, जिस कारण उन्हें अपनी कोचिंग को बंद करना पड़ा है.
कोरोना में बंद हुए कोचिंग संचालकों को ऑनलाइन क्लास कंडक्ट कराने की अनुमति तो दी गयी, मगर संसाधनों की कमी के कारण शहर के अधिकतर छोटे कोचिंग संस्थान इसे सुचारु रूप से चलाने में असमर्थ हैं.
एक अनुमान के तहत ऑनलाइन क्लास कंडक्ट कराने के लिए एक सेटअप तैयार करने में 4-5 लाख रुपये का खर्च आता है, जो छोटे कोचिंग संस्थानों के लिए दूर की कौड़ी के सामान है. इसके साथ ही ग्रामीण इलाके में रहने वाले छात्रों के सामने नेट कनेक्टिविटी नहीं होने के कारण भी ऑनलाइन क्लास छात्रों के लिए कारगर सिद्ध नहीं हो पायी है.
सुचारू रूप से ऑनलाइन क्लास चलाने के लिए इंटरनेट की डाउनलोडिंग व अपलोडिंग स्पीड कम से कम 10 एमबीपीएस होनी चाहिए. जबकि राज्य के ग्रामीण इलाकों में सिर्फ केबीपीएस की स्पीड ही मिल पाती है, जिसमें यूट्यूब भी सही ढंग से नहीं चल पाता.
कोचिंग एसोसिएशन ऑफ बिहार (कैब) के संस्थापक मेंबर जॉन बताते हैं कि महीनों से कोचिंग बंद होने की वजह से इनसे जुड़े लोग प्रभावित हैं ही, इसके साथ ही राज्य सरकार को भी करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ रहा है. उनके मुताबिक कोचिंग संस्थान हर साल जीएसटी व टैक्स के रूप में राज्य सरकार को 3000 करोड़ रुपये अदा करते हैं.
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कोचिंग का महीने में लगने वाला लाखों रुपये का किराया
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कोचिंग संस्थान में जुड़े टीचिंग व नॉन टीचिंग स्टाफ की सैलरी
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रिर्टन भरना व सीए की फीस अदा करना
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संचालकों की खुद के
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रोजमर्रा के खर्च
Posted by Ashish Jha