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पटना में 1893 से हो रही है दुर्गा की पार्थिव प्रतिमा की पूजा, जानें 100 साल से अधिक पुरानी समितियों का इतिहास

शहर में कई ऐसी दुर्गापूजा समितियां हैं जो 100 वर्षों से अधिक समय से शहर में पंडाल निर्माण कर पूजा का आयोजन करती आ रही हैं. कई समितियों का इतिहास 100 वर्षों से अधिक रहा है. वर्तमान समय में भी समितियां भव्य तरीके से पूजा आयोजित कर रही हैं. पेश है रिपोर्ट

पटना. शहर में कई ऐसी दुर्गापूजा समितियां हैं जो 100 वर्षों से अधिक समय से शहर में पंडाल निर्माण कर पूजा का आयोजन करती आ रही हैं. चितरोहरा स्थित चावल बाजार, चूड़ी मार्केट कदमकुआं, गांधी स्मारक सदन पुनाईचक,, जीएम रोड, बिहार कॉपरेटिव कैंपस छज्जूबाग आदि कई समितियों का इतिहास 100 वर्षों से अधिक रहा है. वर्तमान समय में भी समितियां भव्य तरीके से पूजा आयोजित कर रही हैं.

चितरोहरा स्थित चावल बाजार : इस वर्ष 105वीं वर्षगांठ मना रही समिति

चितरोहरा स्थित चावल बाजार में इस वर्ष मां की प्रतिमा के साथ अन्य देवी-देवता बंगला साज-सज्जा में नजर आयेंगे. यहां कोलकाता परिवेश में राम, लक्ष्मण व सीता की तस्वीर लगाई जायेगी. यहां हर वर्ष श्री श्री दुर्गा पूजा समिति नवयुवक संघ के तत्वाधान में पूजा का आयोजन किया जाता है. खास बात यह है कि यह समिति इस वर्ष 105वीं वर्षगांठ मना रही है. इसके अध्यक्ष जवाहर केशरी हैं. समिति के नाथन रजक बताते हैं कि किरोसिन तेल की मदद से रोशनी का इंतजाम कर बसंत साव व बिहारी लाल के नेतृत्व में पूजा की शुरूआत हुई थी. यही वजह है कि समिति का नाम नवयुवक संघ पड़ा. साथ ही समिति के लोगों ने मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा व गिरजाघर का भी निर्माण यहां कराया है.

110 वर्ष से पूजा का आयोजन

राजधानी के बेली रोड स्थित पुनाईचक के गांधी स्मारक सदन में इस वर्ष भव्य पंडाल का निर्माण कराया जा रहा है. यहां से 1500 मीटर तक लाइटें भी लगाई जा रही है. यहां बन रहे देवी-देवता के प्रतिमा बनाने की जिम्मेदारी कोलकाता के कारीगर संजय व टुनटुन कुमार को दी गई है. खास बात यह है कि इस समिति में 100 से भी ज्यादा सदस्य हैं और पिछले 110 वर्ष से पूजा का आयोजन किया जा रहा है. इसके अध्यक्ष बसंत सिंह हैं. उन्होंने बताया कि प्रतिमा का निर्माण पाल कालीन कला के आधार पर की जा रही है. इस वर्ष 16 फुट ऊंची मां की प्रतिमा विराजमान होंगी. समिति के विजय कुमार बताते हैं कि समिति के गठन होने के दौरान से ही विसर्जन में लाठी अखाड़ा का आयोजन होता था. इसे आज भी हम मना रहे हैं.

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तीसरी पीढ़ी कर रही पूजा

शहर के जीएम रोड स्थित 16 हजार वर्गफुट में इस वर्ष पूजा पंडाल का निर्माण कराया जा रहा है. पूजा के दौरान शिव तांडव, महिषासुर वध व राधा-कृष्ण रासलीला का आयोजन होगा. समिति के महासचिव अर्जुन यादव बताते हैं कि वर्ष 1920 से श्री श्री दुर्गा पूजा संगीत समिति के तत्वाधान में यहां पूजा का आयोजन हो रहा है. इतिहास की बात करें तो पूजा के दौरान तबला वादक गोदई महाराज, बांसुरी वादक हरि चौरसिया, कथक नृत्यांगना माया चटर्जी, आदि विश्वप्रसिद्ध कलाकार आते थे. हालांकि, जिला प्रशासन से अनुमति नहीं मिलने पर वर्ष 1984 सांस्कृतिक कार्यक्रम पर रोक लगा दी गई. इसके संस्थापक चुरामन यादव हैं. तीसरी पीढ़ी इस वर्ष पूजा का आयोजन कर रही है. यहां की झांकियां भी खास रहती है. पटना हवाई जहाज दुर्घटना, गुजरात में भूकंप, आदि कई झांकियों की प्रस्तुति से दी गई है.

वर्ष 1918 से ही पूजा का हो रहा आयोजन

शहर के कदमकुआं स्थित शिवालय मंदिर के पास श्री श्री दुर्गा पूजा कल्याण समिति के द्वारा वर्ष 1918 से ही पूजा का आयोजन किया जा रहा है. इस वर्ष समिति 106 वां वर्षगांठ पर बन रहे पंडाल को इको फ्रेंडली रखने की कोशिश कर रहे हैं. समिति के सदस्य सोहन व नरेश बताते हैं कि पंडाल में बांस, कपड़ा व अन्य प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल किया जा रहा है. भव्य सजावट के लिए बन रहे कलाकृतियों में भी प्राकृतिक चीजों का ही इस्तेमाल किया जा रहा है. मां दुर्गा को शिवालय मंदिर की तरह बन रहे पंडाल मे विराजेंगी.

130 वर्ष है बंगाली अखाड़ा पूजा समिति का इतिहास

शहर के बंगाली अखाड़ा पूजा समिति का इतिहास काफी पुराना है. यहां पर बंगाली पद्धति से वर्षों से मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना होते रही है. सर्वप्रथम वर्ष 1893 से माता का पूजन शुरु किया गया था. यहां स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों से बचने के लिए कुश्ती करने के बहाने आंदोलन को लेकर रणनीति बनाते थे. वहीं, अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंकने के लिए उसी वर्ष नवरात्र के मौके पर मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना आरंभ की थी. यहां पर स्थापित होने वाली मूर्ति की खास बात है कि मां की सभी प्रतिमाएं एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं. इसका निर्माण कोलकाता के मूर्तिकार अशोक पाल बनाते रहे हैं. यहां लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है.

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