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…और चेहरे पर तेरे गहरी उदासी छायेगी

फ़्ता-रफ़्ता एक दिन तेरी जवानी जायेगी,और चेहरे पर तेरे गहरी उदासी छाएगी,जिंदगी बन जाएगी तब तेरे ऊपर इक अज़ाब,ना-तवानी साथ ले कर जब कहुलत आएगी.

मोतिहारी.रफ़्ता-रफ़्ता एक दिन तेरी जवानी जायेगी,और चेहरे पर तेरे गहरी उदासी छाएगी,जिंदगी बन जाएगी तब तेरे ऊपर इक अज़ाब,ना-तवानी साथ ले कर जब कहुलत आएगी.ये पंक्तियां जिले के बुजूर्ग शायर डॉ अख्तर सिद्दिकी की है. वे इदारा अदब-इस्लामी हिन्द के तत्वावधान में शहर के मिस्कॉट में आयोजित काव्य एवं साहित्यिक गोष्ठी में अपनी रचनाएं पढ़ रहे थे. जैसे ही उन्होंने अपनी यह रचना पढ़ी, पूरा माहौल गंभीर हो गया. शायर क़मर चम्पारणी की यह पंक्ति-तुमको फिरऔन का सिर तन्हा कुचलना होगा. अब,जहां में नहीं मूसा कोई आने वाला, बदलते हालात को रेखांकित किया. वहीं अशरफ अली अशरफ की यह शेर- वो लब-ए- बाम जब बे-नक़ाब आ गया,ढलते मौसम में फिर से शबाब आ गया, लोगों का दाद लेने में कामयाब रहा. प्रसिद्धि अफसाना निगार व शायर ओजैर अंजुम की यह पंक्ति-चमन में हर तरफ बिखरी खिजां मालूम होती है,हमेशा- हर घड़ी बु-ए -गेरां माअलूम होती है, देश की मौजूदा कानून व्यवस्था को रेखांकित करती रही. मजाहिया शायर डॉ सबा अख्तर शोख़ की यह रचना-बागबान-ए-चमन तुझको क्या हो गया, हर तरफ शोर है तू कहां खो गया, तालियां बटोरने में कामयाब रही. इसी तरह से कलीमुल्लाह कलीम व फसी अख्तर आदि ने अपनी अपनी रचनाएं पढ़ीं और माहौल को साहित्यिक बनाया. अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष जनाब ओज़ैर अंजुम ने की,जबकि संचालन फसीह अख्तर फसीह ने किया. धन्यवाद ज्ञापन सैयद मोबीन अहमद ने किया.

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