मोतिहारी.एमजीसीयू में हिन्दी पखवाड़ा के समापन समारोह के अवसर पर ””भारतीय ज्ञान परंपरा और हिन्दी”” विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया.कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव ने कहा कि ज्ञान परंपरा को पुनः स्थापित करने के लिए विश्वविद्यालयाें ने एक समिति का गठन किया गया है. उन्होंने कहा के भारतीय ज्ञान परंपरा पूरे विश्व का मार्गदर्शन कर रही है. उन्होंने हिन्दी भारतीय ज्ञान परंपरा के गहन अध्ययन को बढ़ावा देने का आह्वान किया .मुख्य अतिथि, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. प्रमोद कुमार सिंह ने हिन्दी की समावेशी प्रकृति पर चर्चा करते हुए कहा कि हिन्दी ने कई भाषाओं से शब्दों को आत्मसात किया है. दक्षिण कोरिया के बुसान विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा अध्ययन विभाग के अतिथि प्रोफेसर डॉ. यान वू सोन ने अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में हिन्दी के बढ़ते महत्व पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि 2018 के बाद से कोरिया में हिन्दी को गंभीरता से लिया जाने लगा है. डॉ .मुख्य वक्ता, लालित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. प्रभाकर पाठक ने भारतीय ज्ञान परंपरा में शरीर के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करने के लिए स्वस्थ शरीर आवश्यक है. कार्यक्रम का शुभारंभ हिन्दी विभाग के संकाय सदस्य डॉ. राजेंद्र सिंह बडगुजर द्वारा स्वागत भाषण से हुआ.मानविकी एवं भाषा संकाय के अधिष्ठाता प्रो. प्रसून दत्त सिंह ने भारतीय ज्ञान परंपरा में वेदों की महत्ता पर प्रकाश डाला और कहा कि हिन्दी हमारी मातृभाषा होने के नाते इन परंपराओं की संवाहक रही है. कार्यक्रम का संचालन गरिमा तिवारी ने किया. कार्यक्रम में डॉ गोविंद प्रसाद वर्मा, डॉ आशा मीणा, डॉ पंकज, डॉ दीपक, डॉ विश्वजीत बर्मन, डॉ बिमलेश, डॉ मुकेश, डॉ रश्मि, डॉ बबलू पाल, रविशंकर वर्मा सहित विभिन्न विभागों के संकाय सदस्यों ने भाग लिया .
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