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भारतीय संस्कृति, योग एवं नृत्य से पूरी दुनिया ने सीखा: कुलपति

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक और साहित्यिक परिषद द्वारा "गतिशील शरीर, गतिशील मन : मूर्त अभ्यास के रूप में नृवंशविज्ञान " विषयक कार्यशाला का समापन समारोह आयोजित किया गया.

By Prabhat Khabar News Desk | August 22, 2024 9:34 PM
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मोतिहारी.महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक और साहित्यिक परिषद द्वारा “गतिशील शरीर, गतिशील मन : मूर्त अभ्यास के रूप में नृवंशविज्ञान ” विषयक कार्यशाला का समापन समारोह आयोजित किया गया. कार्यशाला के मुख्य संरक्षक कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव थे. कार्यशाला के संरक्षक प्रो. प्रसून दत्त सिंह, परिसर निदेशक गांधी परिसर सह अध्यक्ष सांस्कृतिक और साहित्य परिषद थे. मुख्य वक्ता के रूप में अर्जेंटीना से आई प्रो. ग्रिट कोएल्टज एवं कार्यक्रम की संयोजक डां. श्वेता थी. समापन समारोह में कुलपति प्रो. श्रीवास्तव ने एमजीसीयू और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ जूजूय, अर्जेंटीना के बीच एमओयू के दिशा में कदम बढ़ाने की बात कही. उन्होंने कहा कि भारत के ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में जो सांस्कृतिक संबंध स्थापित किया वह महत्वपूर्ण है. भारतीय संस्कृति, योग एवं नृत्य से पूरी दुनिया को बहुत कुछ सीखने को मिलता है. प्रो. ग्रीट को कहा की यहां आपका आना अंत नहीं बल्कि शुरुआत है. प्रो. ग्रिट ने सभा में उपस्थित छात्र, छात्राओं एवं प्राध्यापकों के साथ नृत्य के माध्यम से व्यायाम और भारतीय, अमेरिकन एवं अर्जेंटीनीयन स्टेप्स भी सिखाई. साथ ही नृवंशविज्ञान के द्वारा शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिकता के बीच समानता की व्याख्या की. प्रो. ग्रिट ने कहा की नृत्य से शारीरिक एवं मानसिक मजबूती मिलती है और हम स्वस्थ्य रहते है. उन्होंने अर्जेंटीना के लोक नृत्य एवं शारीरिक स्मृति के तीन स्तर के बारें में विस्तार से व्याख्या की. विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता प्रो. प्रसून्न दत्त सिंह ने साहित्य, काव्य नृत्य, भाव और भरतनाट्यम के माध्यम से मनोरंजन का अर्थ स्पष्ट किया.बुद्ध परिसर के निदेशक प्रो. रणजीत कुमार चौधरी ने नृवंशविज्ञान द्वारा सामाजिक विज्ञान के शोधार्थियों के लिए कार्यशाला को लाभकारी बताया. कार्यशाला के अंत में असम की लोक नृत्य बिहू एवं बिहार के लोक नृत्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में डॉ. मनीषा रानी, डॉ. उमेश पात्रा, डॉ. ओमकार पैथलोथ, डॉ. अनुपम कुमार वर्मा, डॉ. अभय विक्रम सिंह आदि शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों की उपस्थिति थी.

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