पटना. बिहार की सबसे बड़ी और बहुप्रतीक्षित डागमारा पनबिजली परियोजना बंद होगी. इस पर आगे अब कोई काम नहीं होगा. केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण द्वारा सुपौल में कोसी नदी पर प्रस्तावित डागमारा बिजली घर की उत्पादन लागत अधिक बताते हुए डीपीआर लौटाये जाने के बाद राज्य सरकार ने भी हथियार डाल दिये हैं.
ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव ने कहा कि सरकार की मंशा कोसी नदी पर डागमारा को साकार करने की थी. इसके लिए पूरी कोशिश भी की गयी, लेकिन उत्पादन लागत अधिक होने के कारण अब डागमारा पनबिजली परियोजना को बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. सरकार ने आगे डागमारा पर काम नहीं करने का निर्णय लिया है.
कैबिनेट की मंजूरी के बाद राज्य सरकार ने 130 मेगावाट क्षमता के डागमारा पनबिजली परियोजना के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की थी. इसका जिम्मा एनएचपीसी को दिया था. यहां 7.65 मेगावाट की कुल 17 यूनिटें बननी थीं. मेसर्स रोडिक कंसल्टेंट द्वारा निर्मित परियोजना की डीपीआर केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण को मंजूरी के लिए भेजी गयी, लेकिन सात जनवरी, 2022 को प्राधिकरण ने डागमारा की डीपीआर को उचित नहीं बताते हुए वापस कर दिया. इसके पीछे प्राधिकरण ने कई ठोस कारण गिनाये.
प्राधिकरण के सचिव विजय कुमार मिश्र ने एनएचपीसी के सीएमडी को पत्र लिख कर कहा है कि डागमारा से बिजली के उत्पादन पर प्रति मेगावाट 43.39 करोड़ रुपये खर्च होंगे, जो दूसरी पनबिजली परियोजनाओं से 10 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट अधिक है. यही नहीं, डागमारा की बिजली वितरण लागत प्रति यूनिट 18.67 रुपये आयेगी, जो काफी अधिक है. प्रस्तावित डीपीआर में कोसी मेची लिंक प्रोजेक्ट के लिए अपस्ट्रीम में पानी के किसी मोड़ के कारण परियोजना की स्थापित क्षमता 130 मेगावाट से और कम हो सकती है.
डागमारा पनबिजली परियोजना को लेकर ऊर्जा मंत्रालय ने 15 अप्रैल, 2021 को बैठक की थी. केंद्रीय मंत्री आरके सिंह और बिहार के ऊर्जा सचिव संजीव हंस के साथ हुई इस बैठक में डागमारा की केंद्र से सहमति मिली थी. इसके बाद एनएचपीसी (राष्ट्रीय जलविद्युत निगम) ने इस परियोजना की संभावनाओं का आकलन किया था. 130 मेगावाट की इस पनबिजली परियोजना पर अध्ययन कर इसके नफा-नुकसान पर अपनी रिपोर्ट ऊर्जा मंत्रालय को दी थी.
इसी बीच बिहार सरकार की ओर से भी केंद्र सरकार से अनुरोध किया गया था कि वह डागमारा पर काम करे. परियोजना पर 2400 करोड़ खर्च होने का अनुमान था. एनएचपीसी ने इसे विकसित करने के बदले बिहार से कुछ राशि और छूट की मांग की थी. इसी के आलोक में बिहार सरकार ने एनएचपीसी को 700 करोड़ देने की हामी भरी ताकि बिहार को सस्ती बिजली मिल सके.
बिहार सरकार का आकलन था कि डागमारा के साकार होने से राज्य को हर साल 375 करोड़ की बचत होगी. साथ ही कोसी के एक बड़े भू-भाग को बाढ़ से मुक्ति भी मिलेगी, लेकिन प्राधिकरण के पत्र ने इस परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया. उल्लेखनीय है कि डागमारा की डीपीआर पहले भी खारिज की जा चुकी है तब राज्य सरकार ने संशोधित डीपीआर बनायी थी.