बंगले से बेदखल हुए चिराग पासवान को लेकर बोले मुकेश सहनी, भाजपा की नीति ‘यूज एंड थ्रो’ की

मुकेश सहनी ने सोमवार को भाजपा को घेरते हुए कहा कि उनकी नीति ही यूज एंड थ्रो की रही है. मुकेश सहनी ने कहा कि हमारी बात छोड़ दीजिए, एक साल पहले जिस दिवगंत रामविलास पासवान जी को भाजपा सरकार ने पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया था, आज उनकी ही पत्नी और बेटे को बेइज्जत कर घर से बाहर निकाल दिया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 4, 2022 4:38 PM

पटना. विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख और पूर्व मंत्री मुकेश सहनी ने सोमवार को भाजपा को घेरते हुए कहा कि उनकी नीति ही यूज एंड थ्रो की रही है. मुकेश सहनी ने कहा कि हमारी बात छोड़ दीजिए, एक साल पहले जिस दिवगंत रामविलास पासवान जी को भाजपा सरकार ने पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया था, आज उनकी ही पत्नी और बेटे को बेइज्जत कर घर से बाहर निकाल दिया है.

चिराग का किया गया इस्तेमाल

बोचहां सीट पर हो रहे उपचुनाव में अपनी पार्टी के उम्मीदवार का चुनाव प्रचार करने पहुंचे मुकेश सहनी ने कहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी के खिलाफ इस्तेमाल कर लिया गया. जब चिराग पूरी तरह इस्तेमाल हो गये तो अब उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है.

रामविलास पासवान की तस्वीर सड़क पर फेंगी गयी

उन्होंने कहा कि चिराग पासवान के पिता आज भी दलितों के दिलों में बसते हैं. भाजपा की सरकार ने आज उनके पुत्र और पत्नी को बेघर कर दिया गया. चिराग खुद कह रहे हैं कि उन्हें तो घर खाली करना ही था, लेकिन बेइज्जत कर के बंगले से निकाला गया. रामविलास पासवान जी की तस्वीर घर के बाहर फेंक दी गयी.

चुनाव एक बड़ा मौका

मुकेश सहनी ने भाजपा को संत कबीर के दोहे के जरिए नसीहत देते हुए कहा, तिनका कबहूं ना निंदिये, जो पांव तले होय, कबहूं उड़ आंखों में पड़े, पीर घनेरी होय.’ पूर्व मंत्री ने कहा कि हमारे साथ क्या हुआ, यह सबको पता है. अब यह चुनाव एक बड़ा मौका है, जब ऐसी राजनीति करने वालों से वोटों के जरिए बदला लिया जाए, जो सत्ता तक पहुंचने के लिए किसी का यूज तो करते हैं, लेकिन जब वह अपना हक मांगते हैं, तो उन्हें फेंक देते हैं.

जीत का विश्वास 

उन्होंने कहा कि आप लोगों के प्यार, समर्थन देखकर ऐसा तय है कि वीआईपी की प्रत्याशी डॉ गीता कुमारी की जीत तय है, लेकिन विरोधी को कम आंकना हमारी भूल होगी. उन्होंने कहा कि यह चुनाव बिहार की न केवल राजनीति की दिशा तय करेगी, बल्कि यह भी तय करेगी कि सियासत में मछुआरों और अति पिछड़ों की हिस्सेदारी कितनी होगी.

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