पूर्णिया, अरुण कुमार: मुलायम सिंह यादव अब इस दुनियां में नहीं रहे लेकिन कार्यकर्ताओं और शुभचिंतकों के दिलों में आज भी जिंदा हैं. नेता जी का स्वभाव भी कुछ एसा था कि जो एक बार उनसे मिल लिये, उनके ही होकर रह गये. बिहार के सीमांचल से उनका बेहद लगाव था. यही वजह है कि इस इलाके के कई लोगों से उनके मधुर संबंध आज तलक बने रहे. इन्हीं में एक हैं सरोज कुमार भारती.
नेताजी ने उन्हें बिहार प्रदेश समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष बनाया था. पुरानी यादों को याद करते हुए श्री भारती भावुक हो जाते हैं. उन्होने मुलायम सिंह यादव से जुड़े कई संस्मरण साझा किये. वह बताते हैं कि नेताजी का सीमांचल से बेहद लगाव था. इसकी खास वजह यह थी कि 1995 के विधानसभा चुनाव में सपा ने पहली बार सीमांचल से खाता खोला था. उस वक्त पार्टी के अध्यक्ष रामदेव सिंह यादव थे. हालांकि सपा ने बिहार में एक दर्जन से अधिक सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे लेकिन इनमें दो सीटें उनकी झोली में गयी थी. एक अररिया की जोकीहाट और दूसरी पूर्णिया की अमौर सीट. तब से इस इलाके से उनकी नजदीकियां काफी बढ़ गयी थी.
मुलायम सिंह यादव का यहां कई बार आना हुआ. कभी अपने प्रत्याशी का मनोबल बढाने के लिए चुनावी सभा में आये तो कभी खास कार्यक्रम में. जब 1998 में रक्षा मंत्री बने तब भी यहां आये थे. तब बिहार में समाजवादी पार्टी की बागडोर पप्पू यादव के पास थी. पूर्णिया के सर्किट हाउस में ठहरे थे और अगले दिन अररिया की सभा में शामिल हुए थे. इस दौरान उन्होने पार्टी कार्यकर्ताओं से आत्मीयता से मिल रहे थे.
श्री भारती बताते हैं कि नेताजी कार्यकर्ताओं के दिलों में आज भी जिंदा हैं. वह कार्यकर्ताओं के सुख और दुख में आकर शामिल होते थे. जब कभी भी उनसे मिलने के लिए लखनउ जाना होता था तब वे मिलते ही पहला सवाल यही पूछते थे- कहां ठहरे हैं? कोई दिक्कत तो नहीं.
मुलायम सिंह यादव को अपना गुरू मानने वाले श्री भारती कहते हैं कि बातचीत में अक्सर वह कहा करते थे कि पार्टी के निचले स्तर के कार्यकर्ता की अहमियत को समझें और उनका सम्मान करें. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक बार यूपी के चुनाव में मुझे तीन विधानसभा का पर्यवेक्षक बनाया था. मेरे साथ बिहार के अन्य साथी भी गये थे. जब अकेले में उनसे मुलाकात हुई तब उन्होने कहा-क्या अकेले आये हैं? और लोग भी हैं? कहां हैं वे सभी. बाहर गेट पर हैं. अरे उन्हें बुलाओं. वे लोग क्या समझेंगे. जब वे लोग नेताजी के सामने आये तो उन्होने एक-एक कर सभी से परिचय पूछा. कहा- कहां ठहरे हैं? खाना खाया. कोई दिक्कत तो नहीं. यह बातें कार्यकर्ताओं के दिल को छू लिया.
मुलायम सिंह यादव यूं ही राजनीति के अखाड़े पर इतने दिन नहीं टिके. इसी से जुड़ा एक वाकया को याद करते हुए पूर्व सपा अध्यक्ष श्री भारती कहते हैं कि यह बात 1999 की है जब पहलीबार नेताजी का फोन उनके घर पर आया. उस वक्त वे घर पर नहीं थे. जब उनसे बात हुई तो उन्होने सिर्फ इतना कहा कि बिहार का दायित्व आपके कंधों पर देना चाहते हूं. यह मेरे लिए अकल्पनीय था. मैंने सकुचाते हुए कहा कि मुझे सोचने का मौका दिया जाये. उन्होन छूटते ही कहा- अरे, राजनीति में अवसर बार-बार नहीं आते. क्या मेरी इच्छा का सम्मान आप नहीं करोगे? मैंने कहा- जैसी आपकी इच्छा.