कौड़ी के भाव में बेचा गया केवीके का बांस
जलालगढ़ : कृषि विज्ञान केंद्र सह अनुसंधान उपकेंद्र जलालगढ़ में सैकड़ों हरे बांस को कौड़ियों के भाव में बेचने का मामला प्रकाश में आया है. यह अनुसंधान केंद्र 108 एकड़ में फैला हुआ है. इस केंद्र के एक तरफ बाउंड्री वॉल है, तो तीन तरफ से बांस का रोपण कर इसकी घेराबंदी की गयी है. […]
जलालगढ़ : कृषि विज्ञान केंद्र सह अनुसंधान उपकेंद्र जलालगढ़ में सैकड़ों हरे बांस को कौड़ियों के भाव में बेचने का मामला प्रकाश में आया है. यह अनुसंधान केंद्र 108 एकड़ में फैला हुआ है. इस केंद्र के एक तरफ बाउंड्री वॉल है, तो तीन तरफ से बांस का रोपण कर इसकी घेराबंदी की गयी है. बांस को बेचे जाने की भनक मंगलवार को लोगों को हुई. तब पूछताछ करने पर प्रक्षेत्र प्रभारी डाॅ गोपाल लाल चौधरी ने बताया कि छह इंच के करीब बांस को 15 रुपये तथा छह इंच से 10 इंच तक का बांस 24 रुपये में बेचा गया है.
पूर्व में 50 से 70 रुपये में बिका है बांस : स्थानीय लोगों की मानें तो घेरा के रूप में जो बांस लगी हुई थी, उसे दो वर्ष पहले 50 से 70 रुपये की दर से बेची गयी थी. ऐसे में 15 से 24 रुपये में इस बार बांस का बेचा जाना सवालों के घेरे में है. इतना ही नहीं बांस की बिक्री के लिए निविदा निकाली गयी या नहीं, इसकी कोई जानकारी स्थानीय लोगों को नहीं है. जबकि पूर्व में आम, घास, आंवला, अमरुद के बिक्री के लिए टैम्पू से
कौड़ी के भाव…
प्रचार-प्रसार किया जाता था. खास बात यह है कि बांस बेचने के दौरान घेरा बना रहे इसका भी ख्याल नहीं रखा गया है. स्थानीय लोगों ने बताया कि जिस ठेकेदार ने बांस खरीदा है, वह कृषि उपकेंद्र से निकल कर इसे 70 से 80 रुपया में जरूरतमंदों के बीच बेचा है.
स्थानीय लोगों ने की जांच की मांग : बांस बेचे जाने की सूचना के बाद प्रखंड प्रमुख विवेंद्र कुमार सिंह कृषि उपकेंद्र पहुंचे और बांस बेचे जाने के तौर-तरीके पर सवाल उठाये. उन्होंने कहा कि इतने कम दर में बांस बेचे जाने से कृषि केंद्र को आर्थिक रूप से क्षति हुई है. विधायक प्रतिनिधि शकील अंसारी, भाजपा नेता कुंदन कुणाल, राजद प्रखंड अध्यक्ष परमानंद यादव, जदयू प्रखंड अध्यक्ष मंजूर अहमद, सदन लाल, अजीत सिंह, दीपक कुमार आदि ने बांस की अवैध बिक्री पर सवाल उठाते हुए सबौर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति से जांच की मांग की है.
कृषि विवि सबौर के कुलपति से जांच की मांग
छह इंच के बांस को 15 रुपये तथा 6-10 इंच तक के बांस को 24 रुपये में बेचा
पहले 50 से 70 रुपये में बिका था बांस
बांस बेचने की निविदा निकाली गयी थी. उसे ब्लॉक, पोस्ट ऑफिस, बैंकों के आगे चिपकाया गया था. किसी स्थानीय व्यक्ति ने निविदा में न तो रुचि दिखायी और न ही प्रक्रिया में भाग लिया. बांस से केंद्र को जो राजस्व मिला है वह कहीं से कम नहीं है. घेरा के रूप में जो बांस सूख चुका था, उसे ही बेचा गया है, जबकि हरे बांस यथावत हैं.
डॉ एसबी सिंह, कार्यक्रम समन्वयक, केवीके, जलालगढ़