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कृष्णानंद को रिमांड पर ले पुलिस करेगी पूछताछ

कृष्णानंद यादव ने सोमवार को न्यायालय में किया था सरेंडर मुंगेर : इनामी अपराधी कृष्णानंद यादव को पुलिस तो गिरफ्तार नहीं कर सकी, लेकिन उसने दो दशक बाद खुद ही न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया. उसके आत्मसमर्पण को जहां राजनीति दृष्टिकोण से देखा जा रहा है. वहीं माना जा रहा है कि हत्या के मामले […]

कृष्णानंद यादव ने सोमवार को न्यायालय में किया था सरेंडर

मुंगेर : इनामी अपराधी कृष्णानंद यादव को पुलिस तो गिरफ्तार नहीं कर सकी, लेकिन उसने दो दशक बाद खुद ही न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया. उसके आत्मसमर्पण को जहां राजनीति दृष्टिकोण से देखा जा रहा है. वहीं माना जा रहा है कि हत्या के मामले में विरोधियों से मेल-मिलाप हो जाने के कारण उसने खुद को सरेंडर किया. इधर मुंगेर पुलिस ने कृष्णानंद यादव को रिमांड पर लेने की तैयारी शुरू कर दी है. एसपी आशीष भारती ने बताया कि कृष्णानंद यादव को रिमांड पर लेकर पूछताछ की जायेगी.
सिपाही से अपराधी बना कृष्णानंद: नयारामनगर थाना क्षेत्र के पनियाचाक पाटम गांव का रहने वाला कृष्णानंद यादव सिपाही था. वह सिपाही में नौकरी लगाने की दलाली करता था. वह नौकरी छोड़ कर नौकरी लगाने का कारोबार ही करने लगा. सिपाही बहाली को लेकर ही एक दशक पूर्व जमालपुर के बीएमपी के समीप कृष्णानंद गिरोह और एक अन्य गिरोह के बीच जम कर गोलीबारी हुई थी. धीरे-धीरे वह अपराध की दुनिया से जुड़ता चला गया. वर्ष 1994 में पाटम के जगदीश यादव की गोली मार कर हत्या कर दी.
गवाही देने वाले जगदीश यादव के बेटे भुटो यादव की भी वर्ष 1995 में ट्रेन से खींच कर गोली मार हत्या कर दी थी. इसके बाद मुंगेर में उसका नाम सुर्खियों में आ गया. उसकी गिरफ्तारी के लिए एसटीएफ की टीम ने वर्ष 2004 में जब उसके घर पर छापेमारी की, तो कृष्णानंद यादव ने जवानों पर फायरिंग की. जिसमें एक जवान घायल भी हो गया था. नवंबर 2004 में ही उसने मुफस्सिल थाना के बांक गांव निवासी संजय यादव, रविश यादव, जीतेंद्र यादव एवं अनिल साव को एक साथ गोलियों से भून दिया था. इसके बाद वह अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह कहलाने लगा. क्योंकि उसे पुलिस गिरफ्तार ही नहीं कर पा रही थी.
नक्सली के नाम पर चलाता रहा आपराधिक साम्राज्य
कृष्णानंद यादव को पुलिस ने भगोड़ा घोषित किया और उस पर इनाम की घोषणा की. कई टास्क फोर्स का गठन हुआ. लेकिन उसे पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी. लंबे समय तक वह अंडरग्राउंड हो गया. कहा जाने लगा कि कृष्णानंद यादव ने नक्सली संगठन से अपना नाता जोड़ लिया. इसके बाद लोगों में उसकी एक अलग दहशत दिखने लगी. कोई उसके खिलाफ कुछ बोलने से भी कतराने लगा. वह भेष बदलने में भी माहिर है. वह गांव आता था, मोटर साइकिल से मुंगेर और जमालपुर की सैर भी करता था.
लेकिन कोई उसे पहचान भी नहीं पाता था. वर्ष 2010 में लखीसराय के अभयपुर में नक्सलियों ने दारोगा अभय यादव, बीएमपी जवान लुकस टेटे सहित चार जवानों को अपहृत कर लिया था. दारोगा अभय यादव के खगड़िया स्थित घर व ससुराल में एक आदमी को देखा गया. जिसके बारे में कहा जाता था कि वह कृष्णानंद यादव है. उसने दारोगा के घर वालों को सांत्वना दी कि कुछ नहीं होगा. इसके दूसरे ही दिन दारोगा अभय यादव सहित अन्य जवानों को छोड़ दिया गया था. जबकि लुकस टेटे की हत्या की दी गयी थी. इसके बाद कहा जाने लगा कि कृष्णानंद यादव के हस्तक्षेप से ही दारोगा को छोड़ा गया था. जिसके बाद उसे नक्सली संगठन से जोड़ कर देखा जाने लगा.

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