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नहाय-खाय के साथ छठ पर्व शुरू, मां सीता ने मुंगेर में किया था छठ, पढ़ें कुछ खास

पटना/मुंगेर : त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें काफी कठिन माना जाता है और इन्हीं में से एक लोक आस्था का महापर्व छठ है जिसे रामायण और महाभारत काल से ही मनाने की परंपरा चली आ रही है. मंगलवार से नहाय-खाय से शुरू हुये लोकआस्था के इस चार दिवसीय महापर्व को […]

पटना/मुंगेर : त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें काफी कठिन माना जाता है और इन्हीं में से एक लोक आस्था का महापर्व छठ है जिसे रामायण और महाभारत काल से ही मनाने की परंपरा चली आ रही है. मंगलवार से नहाय-खाय से शुरू हुये लोकआस्था के इस चार दिवसीय महापर्व को लेकर कई कथाएं मौजूद हैं. यह पर्व 36 घंटे का निर्जला व्रत है. छठ पूजा का मुंगेर में विशेष महत्व है. आनंद रामायण के अनुसार मुंगेर जिला के बबुआ घाट से तीन किलोमीटर गंगा के बीच में पर्वत पर ऋषि मुद्गल के आश्रम में मां सीता ने छठ किया था. जहां मां सीता ने छठ किया था वह स्थान वर्तमान में सीता चरण मंदिर के नाम से जाना जाता है. जो आज भी मां सीता के छठ पर्व की कहानी को दोहराता है.

मंदिर का गर्भ गृह साल में छह माह समाया रहता है गंगा में
इस मंदिर का गर्भ गृह साल के छह महीने गंगा के गर्भ में समाया रहता है. जबकि गंगा का जल स्तर घटने पर 6 महीने ऊपर रहता है. ऐसा माना जाता है कि मंदिर के प्रांगण में छठ करने से लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है. आनंद रामायण के अनुसार राम द्वारा रावण का वध किया गया था. चूंकि रावण एक ब्रह्मण था इसलिए राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा. इस ब्रह्म हत्या के पापमुक्ति के लिए आयोध्या के कुलगुरु मुनि वशिष्ठ ने मुगदलपुरी (वर्तमान में मुंगेर) में ऋषि मुग्दल के पास राम सीता को भेजा. भगवान राम को ऋषि मुद्गल ने वर्तमान कष्टहरणी घाट में ब्रह्महत्या मुक्ति यज्ञ करवाया और माता सीता को अपने आश्रम में ही रहने का आदेश दिया. चूकि महिलाएं यज्ञ में भाग नही ले सकती थी. इसलिए माता सीता ने ऋषि मुद्गल के आश्रम में रहकर हीं उनके निर्देश पर षष्ठी व्रत किया. सूर्य उपासना के दौरान मां सीता ने अस्ताचलगामी सूर्य को पश्चिम दिशा की ओर तथा उदीयमान सूर्य को पूरब दिशा की ओर अर्घ्य दिया था. आज भी मंदिर के गर्भ गृह में पश्चिम और पूरब दिशा की ओर माता सीता के पैरों के निशान मौजूद है.

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