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हर कर्म को यज्ञ के रूप में देखा जा सकता है

मुंगेर : परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा कि यज्ञ का तात्पर्य उत्पादन, वितरण और ग्रहण की क्रियाओं से है. जीवन के हर कर्म को यज्ञ के रूप में देखा जा सकता है. स्वामी सत्यानंद ने सभी के सुख और समृद्धि के लिए रिखियापीठ में राजसूय महायज्ञ की परंपरा प्रारंभ किया था. जिसका शतचंडी महायज्ञ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 11, 2019 7:33 AM

मुंगेर : परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा कि यज्ञ का तात्पर्य उत्पादन, वितरण और ग्रहण की क्रियाओं से है. जीवन के हर कर्म को यज्ञ के रूप में देखा जा सकता है. स्वामी सत्यानंद ने सभी के सुख और समृद्धि के लिए रिखियापीठ में राजसूय महायज्ञ की परंपरा प्रारंभ किया था. जिसका शतचंडी महायज्ञ अभिन्न अंग रहा. वे मंगलवार को पादुका दर्शन आश्रम में चल रहे श्रीलक्ष्मी नारायण महायज्ञ के तीसरे दिन श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए ये बातें कही.

उन्होंने कहा कि स्वामी सत्यानंद का वास्तविक लक्ष्य धर्म की स्थापना था. जैसा छान्दोग्य उपनिषद‍् में वर्णित है त्रयो धर्मस्कंध: अथार्त धर्म के तीन मुख्य आधार है. स्वाध्याय, यज्ञ और दान. स्वामी सत्यानंद ने अपने जीवनकाल में इन तीनों आधारों को विधिवत‍् ढंग से प्रतिष्ठित किया. स्वाध्याय का लक्ष्य अपने भीतर के षड़रिपुओं यानी काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मात्सर्य को जानना, समझना और नियंत्रित करना है.
जिसके लिए स्वामी सत्यानंद ने योगपीठ में योग को माध्यम बनाया. संन्यासपीठ पादुका दर्शन आश्रम में तीसरे दिन का यज्ञ भक्ति और श्रद्धा के वातावरण के संपन्न हुआ. रिखियापीठ की पीठाधीश्वरी स्वामी सत्यसंगानंद सरस्वती यहां पहुंची थी. वाराणसी से आये आचार्यों ने गुरु अर्चना और वैदिक मंत्र पाठ किया. उनका शुद्ध मंत्रोच्चारण सदियों से चली आ रही परंपरा का प्रतीक है. जो दर्शाता है कि किस प्रकार हमारे ऋषि-मुनी शब्द को नाद का स्वरूप देते थे.
मंगलवार को कीर्तन के बीच 1000 किलोमीटर की दूरी तय कर जगन्नाथपुरी से भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद महाप्रसाद और मंदिर के ध्वज के रूप में यज्ञ स्थल पर पहुंचा. ऊॅ नमो नारायणाय और ऊॅ श्रीं महालक्ष्म्यै नम: मंत्र का जाप किया गया. आरती, मंत्र पुष्पांजलि, प्रार्थना और यज्ञ-आशीर्वाद के साथ आज का अनुष्ठान समाप्त हुआ.

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