मुंगेर : प्रधानमंत्री जन आरोग्य आयुष्मान भारत योजना देश की पहली ऐसी योजना है, जिसके तहत आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के लोग गंभीर से गंभीर बीमारी में भी पांच लाख रुपये तक का इलाज मुफ्त करवा सकते हैं. किंतु इस योजना का गोल्डन कार्ड प्राप्त होने के बाद भी मरीज को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है. ऐसे ही एक गरीब परिवार धरहरा निवासी ज्ञानी पासवान है, जो गोल्डन कार्ड रहने के बावजूद अपनी बेटी ज्योति कुमारी का नि:शुल्क इलाज नहीं करवा पाया. वे सरकार से लेकर अधिकारियों तक गुहार लगाते-लगाते रह गये और अंतत: ज्योति ने सोमवार को जिंदगी से हार मान ली. ज्योति का उदाहरण आयुष्मान भारत योजना के लिए एक बड़ी सबक है.
कैंसर पीड़ित ज्योति को नहीं मिल पाया आयुष्मान भारत का लाभ
ज्ञानी पासवान की पुत्री ज्योति पिछले साल से ही कैंसर की बीमारी से पीड़ित थी. इस बीमारी का पता चलने के बाद ज्ञानी मुंगेर के तत्कालीन जिलाधिकारी आनंद शर्मा से मिले. जिसके बाद जिलाधिकारी ने जिला स्वास्थ्य समिति से ज्योति का आयुष्मान भारत योजना के तहत गोल्डन कार्ड बनवाया और उसे यह कह कर बेंगलुरु के निम्हांस हॉस्पीटल भेजा गया कि वहां इस गोल्डन कार्ड पर इलाज फ्री में हो जायेगा. किंतु उसके बाद ज्योति का क्या हुआ, इसे जानने की किसी ने कोशिश तक नहीं की.
हाल यह हुआ कि निम्हांस हॉस्पीटल प्रबंधन ने गोल्डन कार्ड पर ज्योति का इलाज करने से हाथ खड़ा कर दिया और ज्ञानी को जो यहां के कुछ लोगों से सहयोग के लिए राशि मिली थी, उसी से लगभग एक लाख रुपये खर्च करने के बाद ज्योति का ओपन हेड सर्जरी हुआ तथा उसे वहां पर आयुष्मान भारत योजना का लाभ नहीं मिला.
रुपये के अभाव में नहीं हो पाया रेडियेशन व किमोथिरेपी
ज्योति के ऑपरेशन के बाद वहां चिकित्सक ने ज्ञानी से कहा कि अब रेडियेशन के लिए 60 हजार रुपये जमा करना होगा. जिस पर ज्ञानी ने वहां चिकित्सक से कहा कि उसके पास जो भी रुपये थे, वह ऑपरेशन में ही खर्च हो गया है. जिसके बाद अस्पताल प्रबंधन ने अधूरे इलाज में ही ज्योति को हॉस्पीटल से छुट्टी दे दी. तब से ज्ञानी अपनी पुत्री ज्योति को लेकर मारे-मारे फिरता रहा. किंतु ज्योति के रेडियेयान के लिए रुपये का इंतजाम नहीं हो पाया.
रेडियेशन नहीं हो पाने के कारण ज्योति की हालत लगातार बिगड़ती गयी और ज्ञानी भी हार मानने लगा. वह लोगों को बार-बार ज्योति का गोल्डन कार्ड दिखा कर बता रहा कि आयुष्मान भारत योजना के तहत उसकी बेटी के इलाज में एक रुपये तक का लाभ नहीं मिल पाया. इतना ही नहीं इलाज की सुविधा मुहैया कराने को दो बार जिलाधिकारी को भी आवेदन दिया गया तथा दो बार प्रधानमंत्री कार्यालय को भी फैक्स कर सहायता मांगी गयी. लेकिन सब बेकार रहा.
सदर अस्पताल में ज्योति ने ली अंतिम सांस
ज्ञानी ने बताया कि पिछले 24 सितंबर को जब ज्योति की हालत काफी बिगड़ गयी तो लास्ट स्टेज में उसे इलाज के लिए तत्काल सदर अस्पताल में भरती कराया गया. उन्होंने बताया कि भरती होने के बाद से अस्पताल में जो दवा व सूई उपलब्ध था, वह तो अस्पताल से उसे मिल रहा था. किंतु कई ऐसे दवा व सूई भी थे, जो उसे बाहर से खरीद कर लाना पड़ रहा था. इस बात को लेकर प्रभात खबर ने पिछले 3 अक्तूबर को पंज संख्या पांच पर प्रमुखता से समाचार प्रकाशित किया था. जिसके बाद सदर अस्पताल में ज्योति के गोल्डन कार्ड को फिर से रजिस्टर्ड करवाया गया. लेकिन तक तक काफी देर हो चुका था और सोमवार की शाम ज्योति सदा के लिए बुझ गयी.