संस्कृति शून्य राजनीति के दुष्परिणाम विषय पर गोष्ठी
प्रतिनिधि , मुंगेरगंगोत्री के तत्वावधान में एक गोष्ठी का आयोजन बेलन बाजार में किया गया. जिसका विषय ” संस्कृति शून्य राजनीति के दुष्परिणाम” था. गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ पूनम रानी ने की. मुख्य अतिथि के रुप में प्रवीण प्रियदर्शी मौजूद थे. मुख्य वक्ता के रुप में डॉ शिवचंद्र प्रताप ने कहा कि संस्कृति लोकतंत्र की […]
प्रतिनिधि , मुंगेरगंगोत्री के तत्वावधान में एक गोष्ठी का आयोजन बेलन बाजार में किया गया. जिसका विषय ” संस्कृति शून्य राजनीति के दुष्परिणाम” था. गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ पूनम रानी ने की. मुख्य अतिथि के रुप में प्रवीण प्रियदर्शी मौजूद थे. मुख्य वक्ता के रुप में डॉ शिवचंद्र प्रताप ने कहा कि संस्कृति लोकतंत्र की आंख है. अगर संस्कृति राह न दिखाये तो राजनीति देश को रसातल में गिरा देगी. आज हमारे देश की राजनीति संस्कृति शून्य हो गयी है. इसलिए हम दो कदम आगे और चार कदम पीछे वाली गति से आगे बढ़ रहे हैं. आचार्य नरेंद्र देव ने संस्कृति को चित्त की खेती कहा है. अंग्रेजी के एग्रीकलचर से कलचर शब्द बना है तो संस्कृत और हिंदी के शब्द कृषि अथवा कर्षेण से संस्कृति बना है. जिस तरह खेत में गेहूं और गुलाब उगाने के लिए हल चला कर खेत से कांटों, खरपतवारों को निकालना पड़ता है. वैसे ही चित्त से कुप्रवृत्तियों को निकाल कर देवत्व को विकसित करना संस्कृति है.डॉ प्रताप ने कहा कि सभ्यता संस्कृति का वाहृय रूप है. आज हम संस्कृति शून्य सभ्यता में जी रहे है. सभ्यता के इसी नाटक का परिणाम संस्कृति शून्य राजनीति है. आज राजनीति में हर नेता अपने ढंग से अपना चरित्र गढ़ लेते है. इसलिए आज की राजनीति विपरीत दिशा में जा रही है. मौके प्रो. सुनील कुमार सिन्हा, डॉ केके वाजपेयी, नारायण जालान, शिवनंदन सलिल, विजेता मुद्गलपुरी, आचार्य नारायण शर्मा, गुरुदयाल त्रिविक्रम सहित अन्य मौजूद थे.