यह संसार सिंधु है जिसे हनुमान ही पार कर सकते

प्रतिनिधि , मुंगेरदुर्गा मंदिर पुरानीगंज में चल रहे श्री राम कथा ज्ञान यज्ञ के आठवें दिन कथावाचक संत कवि विजेता मुद्गलपुरी ने कहा कि यह संसार सिंधु है और इसे हनुमान ही पार कर सकते हैं. जो राम के सच्चे भक्त है, उन्हीं का कल्याण होगा. उन्होंने प्रवचन में समुद्र लंघन प्रसंग प्रस्तुत करते हुए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 23, 2015 4:04 PM

प्रतिनिधि , मुंगेरदुर्गा मंदिर पुरानीगंज में चल रहे श्री राम कथा ज्ञान यज्ञ के आठवें दिन कथावाचक संत कवि विजेता मुद्गलपुरी ने कहा कि यह संसार सिंधु है और इसे हनुमान ही पार कर सकते हैं. जो राम के सच्चे भक्त है, उन्हीं का कल्याण होगा. उन्होंने प्रवचन में समुद्र लंघन प्रसंग प्रस्तुत करते हुए कहा कि हनु का अर्थ होता है मारना और मान का अर्थ होता है अहंकार. जो व्यक्ति अपने अहंकार का विसर्जन कर देता है वह इस संसार सिंधु को सहजता से पार कर जाता है. उन्होंने कहा कि इस संसार सिंधु में चार बाधाएं है. मेनका, सुरसा, सिहिंका और लंकिनी. मेनका सम्मान देता है. वह हनुमान को सम्मान में उलझा कर रखना चाहता है. लेकिन हनुमान उस सम्मान को स्पर्श कर आगे निकल जाते है. सुरसा सतोगुणी माया है. जैसे-जैसे हनुमान अपना रूप बढ़ाते हैं. सुरसा क्रमश: दुगुनी होती चली जाती है. सुरसा का स्वभाव अर्थशास्त्र की आवश्यकता से मिलती-जुलती है. एक आवश्यकता की पूर्ति होते-होते दूसरी आवश्यकता खड़ी हो जाती है. उन्होंने कहा कि सुरसा को बस में करने के लिए हनुमान जी लघु रुप ले लेते है. सिंहिका तमोगुणी माया है. वह छाया को पकड़ कर अपनी और खींचती है. छाया है यश-काया. सिंहिका उसे नष्ट करना चाहती है. लेकिन हनुमान जी उसे सिंहिका को ही नष्ट कर देते है. लंकिनी रजोगुणी माया है. रजो गुणी माया भ्रम है. वह कहती कुछ है और करती कुछ है. उन्होंने कहा कि सतोगुणी माया सुरसा के साथ बुद्धि से निपटते है. तमोगुणी माया सिंहिका को मार देते है और रजोगुणी माया लंकिनी को अधमरा कर देते है. तब महामाया सीता का दर्शन सुलभ हो पाता है. महामाया के दर्शन के बाद इस संसार सिंधु की यात्रा पूरी होती है.

Next Article

Exit mobile version