सोचने को विवश करती है मक्खनाय नमो नम: पुस्तक
प्रतिनिधि , मुंगेर सृजन साहित्य के तत्वावधान में डॉ सत्येंद्र अरुण द्वारा रचित व्यंग्य संग्रह ” मक्खनाय नामो नम: ” पर एक विचार गोष्ठी आयोजित की गयी. उसकी अध्यक्षता यदुनंदन झा द्विज ने की. विषय प्रवेश कराते हुए कुमार विजय गुप्त ने कहा कि संग्रह में कुल 23 व्यंग्य रचनाएं है जो लोगों को एक […]
प्रतिनिधि , मुंगेर सृजन साहित्य के तत्वावधान में डॉ सत्येंद्र अरुण द्वारा रचित व्यंग्य संग्रह ” मक्खनाय नामो नम: ” पर एक विचार गोष्ठी आयोजित की गयी. उसकी अध्यक्षता यदुनंदन झा द्विज ने की. विषय प्रवेश कराते हुए कुमार विजय गुप्त ने कहा कि संग्रह में कुल 23 व्यंग्य रचनाएं है जो लोगों को एक संदेश देती है. पुस्तक की एक खास विशेषता है कि सारी व्यंग्य रचनाओं में स्तरीयता का निर्वहण किया गया है. जन संपर्क विभाग के उपनिदेशक कमलाकांत उपाध्याय ने कहा कि डॉ सत्येंद्र अरुण में अपनी व्यंग्य रचनाओं में विरोधात्मक प्रवृत्तियों को पनपने नहीं दिया है. कथ्य में कसाव है. जिस कारण सारी रचनाओं में व्यंग्य का स्वाद मिलता है. यदुनंदन झा द्विज ने कहा कि डॉ सत्येंद्र एक मंजे हुए व्यंग्यकर्मी है. हिंदी की विविध विद्याओं में रचने के साथ व्यंग्य पर ज्यादा कार्य किया है. डॉ शब्बीर हसन ने कहा कि यह पुस्तक पाठकों को सोचने पर विवश करती है. गजलकार अनिरुद्ध सिन्हा ने कहा कि व्यंग्य की धार जितनी नुकीली होती है पाठ का स्वाद उतना ही गहरा होगा. निराला से लेकर हरिशंकर परसाई तक के व्यंग्य साहित्य को देखा जाय तो यह कहने कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि डॉ सत्येंद्र ने इन दोनों विभूतियों को छूने का सफल प्रयास दिया है. मृदुला झा ने कहा कि व्यंग्य साहित्य की प्रमुख व रोचक विधा है. रामनरेश पांडेय, अशोक आलोक, रवींद्र राजहंस, अंजनी कुमार सुमन ने भी अपने-अपने विचार रखे.