इस पुराने आइने को तोड़ डालो…

कवि गोष्ठी सह मुशायरा का आयोजन प्रतिनिधि , मुंगेरसमकालीन साहित्य मंच के तत्वावधान में कवि गोष्ठी सह मुशायरा का आयोजन किया गया. उसकी अध्यक्षता डॉ अनिरुद्ध सिन्हा ने की तथा संचालन कवि शहंशाह आलम ने किया.गोष्ठी में मुहब्बत, भाईचारे एवं भाषाओं की उपयोगिता को दर्शाते हुए काव्य आयोजन के माध्यम से साहित्यिक लहजे में सार्वजनिक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 22, 2015 10:06 PM

कवि गोष्ठी सह मुशायरा का आयोजन प्रतिनिधि , मुंगेरसमकालीन साहित्य मंच के तत्वावधान में कवि गोष्ठी सह मुशायरा का आयोजन किया गया. उसकी अध्यक्षता डॉ अनिरुद्ध सिन्हा ने की तथा संचालन कवि शहंशाह आलम ने किया.गोष्ठी में मुहब्बत, भाईचारे एवं भाषाओं की उपयोगिता को दर्शाते हुए काव्य आयोजन के माध्यम से साहित्यिक लहजे में सार्वजनिक संदेश देने का प्रयास किया गया. हिंदी गजल को नयी दिशा देने वाले गजलकार अनिरुद्ध सिन्हा ने दो गजलों का पाठ किया. ” हम तो हर बार भरोसे के तलबगार रहे, एक तुम हो कि हवाओं में गिरफ्तार रहे ”. इसी क्रम में उन्होंने एक गीत ‘ इस पुराने आइने को तोड़ डालो ‘ का भी पाठ किया. कवि शहंशाह आलम ने हाल ही में प्रकाशित अपनी कविता ‘ उस समय की पटकथा ‘ से कई कविताओं का पाठ किया. जिसे श्रोताओं ने काफी सराहा. उर्दू के शायर लाडले शायान ने अपने तरन्नुम अंदाज में गजल का पाठ करते हुए सुनाया ‘ शायान जमाने का ये दस्तूर अलग है, करता हूं गुनाह और गुनाहगार नहीं हूं’. गजल विद्या को अपनी तीक्ष्ण लेखनी से नई चमक प्रदान करने वाले अशोक आलोक की गजल का मतला था- ‘ बहकी हवा में वक्त की फितरत तलाशिये, बुझते हुए चिराग में हिम्मत तलाशिये’. युवा गजलकार विकास ने गजल का पाठ किया- ‘ मैं कहां हूं कहां है घर मेरा, मेरे करीब रहता है डर मेरा ‘. एहतेशाम आलम की पंक्तियां थी- ‘ चलिये तो चलते जाइए मुड़कर न देखिए, मंजिल से पहले मील का पत्थर न देखिये’. युवा गजलकार विनय कुमार सिंह की पंक्तियां थी- ‘ हवा के खौफ से डरना जरूरी, शजर जो ठूंठ है गिरना जरूरी ‘.

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