तिरंगा लहराने में शहीद हुए थे तारापुर के रणबांकुरे

तारापुर : तारापुर की धरती शहीदों की धरती रही है. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान तारापुर थाना में तिरंगा लहराते हुए स्वतंत्रता सेनानियों ने अंगरेजों की गोलियों से अपनी शहादत दी थी. जिसकी याद आज भी तारापुरवासियों के जेहन में है. जब भी देश स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस मनाता है तो बरबस ही शहीदों की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 15, 2016 6:23 AM

तारापुर : तारापुर की धरती शहीदों की धरती रही है. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान तारापुर थाना में तिरंगा लहराते हुए स्वतंत्रता सेनानियों ने अंगरेजों की गोलियों से अपनी शहादत दी थी. जिसकी याद आज भी तारापुरवासियों के जेहन में है. जब भी देश स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस मनाता है तो बरबस ही शहीदों की इस धरती पर रहने वाले गौरवान्वित हो जाते हैं. 15 फरवरी 1932 को तारापुर थाना में तिरंगा फहराने के दौरान शहादत की ऐसी दास्तां लिखी गयी थी जो देश में जलियावाला बाग के बाद दूसरी बर्बरता थी. ‘‘

अगस्त क्रांति और तारापुर मुंगेर की समानान्तर सरकार ’’ शीर्षक लेख में चंदर सिंह राकेश ने लिखा हैं कि 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय क्रांगेस के मुम्बई अधिवेशन में सर्व सम्मति से ‘ अंग्रेजो भारत छोड़ो ’ का प्रस्ताव पारित किये जाने के बाद जब महात्मा गांधी ने अपने अहिंसक आन्दोलन के विपरीत ‘ करो या मरो ’ का उद‍्घोष किया तो इसका परिणाम तारापुर में भी सभी स्तरों पर परिलक्षित होने लगा.

एकजुट हुए थे लोग: 15 फरवरी 1932 को तारापुर गोली कांड में मारे गये दर्जनो शहीदों की शहादत का इंतकाम अंग्रेजों से लेने के लिए यहां के किसान, क्रांतिकारी और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े लोग मचल उठे. 10 अगस्त 1942 को तारापुर थाना क्रांगेस कार्यालय जिसे सत्याग्रह समिति कार्यालय में तब्दील कर दिया गया था. वास्तव में तारापुर की धरती शहीदों की धरती रही है. जहां देशभक्तों ने अपनी शहादत देकर आजादी की लड़ाई में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

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