Munger news : न पेट की आग बुझ रही है और न चैन की नींद ही सो पा रहे हैं. अपना घर रहते हुए भी बेघर की जिंदगी जीने को विवश हैं. किसी ने रेलवे लाइन के किनारे शरण ले रखी है, तो किसी ने सड़क किनारे. जीवन खानाबदोश की तरह हो गया है. बच्चे भूख से बिलख रहे हैं, तो बेजुबान मवेशी भी तड़प रहे हैं. जो बच्चे लाख मनुहार के बाद निवाला लेते थे, आज वे सूखी रोटी के लिए भी तरस रहे हैं.बड़े तो पेट की आग बर्दाश्त कर ले रहे हैं, लेकिन बच्चों को समझाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है. एक पॉलीथिन सीट के नीचे परिवार के कई सदस्य दिन व रात गुजारने को विवश हैं. धूप व बारिश में इनका क्या हाल हो रहा होगा, यह कल्पना करके ही सिहरन पैदा हो जाती है. जिला प्रशासन दावा कर रहा है कि बाढ़ पीड़ितों के बीच राहत सामग्री पहुंचायी जा रही है, लेकिन बाढ़ पीड़ितों को कितनी राहत मिल रही है, ये तो वही जानते हैं. बाढ़ पीड़ितों का कहना है कि राहत सामग्री बंटी जरूर है, लेकिन उससे एक टाइम भी भूख मिटाना मुश्किल है.
अपना घर होते हुए भी हो गये हैं बेघर
जल स्तर में कमी के बावजूद मुंगेर जिले में बाढ़ का कहर जारी है. बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के लोगों को जहां ऊंचा स्थान मिला, वहीं तंबू व प्लास्टिक तान कर बाल-बच्चा, परिवार और मवेशी के साथ ठिकाना बना लिये हैं. बरियारपुर प्रखंड में रेल पटरी के किनारे जहां बाढ़ पीड़ितों ने शरण ले रखी है, वहीं एनएच-80, एनएच-333 समेत अन्य सड़कों के किनारे पॉलीथिन शीट डाल कर ये लोग जीवन गुजार रहे हैं. कुल मिलाकर बाढ़ पीड़ितों की जिंदगी खानाबदोश जैसी हो गयी है. प्रभात खबर की टीम ने बुधवार को अलग-अलग क्षेत्रों में पहुंच कर बाढ़ पीड़ितों का दर्द जानने का प्रयास किया. जिला प्रशासन का दावा है कि 50 हजार से अधिक लोगों तक बचाव व राहत सामग्री पहुंचायी जा चुकी है. पर, प्रशासनिक दावों की पोल सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में बाढ़ की विभिषिका झेल रहे लोगों ने नहीं, बल्कि साहबों की नगरी किला परिसर में खानाबदोश की जिंदगी जी रहे बाढ़ पीड़ित ही खोल रहे हैं.
पॉलीथिन शीट के नीचे कट रहा जीवन
जाफरनगर पंचायत के सैकड़ों लोग समाहरणालय, सूचना भवन, बबुआ घाट समेत अन्य जगहों पर तंबू गाड़ कर गुजर-बसर कर रहे हैं. समाहरणालय के समीप रह रहे जाफरनगर पंचायत के सीताचरण गांव निवासी अजील सिंह ने बताया कि बाढ़ के कारण गांव-घर डूब गया है. बाल-बच्चे, परिवार और मवेशियों को साथ लेकर यहां चले आये. प्रशासनिक स्तर पर हमलोगों को पॉलीथिन शीट उपलब्ध करायी गयी है, जिसे तान कर हम लोग किसी तरह गुजर-बसर कर रहे हैं. पर, एक भी दिन हमलोगों को सूखा राशन नहीं दिया गया. मंगलवार की शाम 04 बजे इस बाढ़ में पहली बार खाना खिलाया गया, जबकि हमलोग कई दिनों से यहां रह रहे हैं. उन्होंने कहा कि एक बार एक मवेशी पर तीन-चार किलो भूसा दिया गया. उसके बाद आज तक दोबारा भूसा देने कोई नहीं आया. हमलोग किसी तरह अपने मवेशी को पाल रहे हैं, क्योंकि मवेशी ही हमारे जीवन का आधार हैं.जाफरनगर पंचायत के सीताचरण साहेब दियारा निवासी रत्ना देवी ने बताया कि प्रशासनिक स्तर पर भले ही हमलोगों को एक-एक पॉलीथिन का तिरपाल दिया गया है, लेकिन सूखा राशन तो कभी मिला ही नहीं. किसी तरह हमलोग समय काट रहे हैं.
रेल पटरी व एनएच का किनारा बना बाढ़ पीड़ितों का ठिकाना
बाढ़ से बरियारपुर प्रखंड की सभी 11 पंचायतें बुरी तरह प्रभावित हैं. गांव-घर डूब जाने के कारण लोग बाहर निकल आये हैं. कोई रेल पटरी के किनारे तंबू लगा कर रह रहा है, तो कोई एनएच-80 व एनएच-333 के किनारे जिंदगी बिताने को विवश है. बरियारपुर की नीरपुर पंचायत की बड़ी आबादी बाढ़ के बीच रेलवे लाइन के किनारे शरण लिये हुए है.बरियारपुर प्रखंड में लगभग एक लाख की आबादी प्रभावित है. इनके लिए चलाया जा जा रहा प्रशासनिक राहत ऊंट के मुंह में जीरा वाली कहावत को चरितार्थ कर रहा है. हालत यह है कि एक वक्त का भोजन मिल जाये वही गनीमत है. बरियारपुर-खड़गपुर मार्ग पर कृष्णा नगर के समीप तंबू के नीचे रह रहीं बाढ़ पीड़ित भवानी देवी कहती हैं कि हम पांच लोगों का परिवार है. चूड़ा-गुड़ एवं चीनी का पैकेट सरकारी स्तर पर दिया गया है. इससे वे लोग एक टाइम भी भूख नहीं मिटा सके.
नाम मात्र का मिला था सूखा राशन
नीरपुर रेलवे लाइन के किनारे रह रहीं बाढ़ पीड़ित सुमन देवी, जनार्दन सिंह सहित अन्य ने कहा कि पॉलीथिन तो यहां रेलवे लाइन किनारे रह रहे सभी बाढ़ पीड़ितों को दिया गया है, लेकिन भोजन का एक दाना भी हम लोगों को नसीब नहीं है. पूर्व में बाढ़ आयी थी, तो सरकारी स्तर पर भोजन शिविर में हम लोगों को दोनों टाइम भोजन मिलता था. इस बार जो सूखा राशन दिया गया, वह भी किसी को मिला और किसी को नहीं. जिन्हें सूखा राशन मिला, उससे एक टाइम का भी भूख मिटाना मुश्किल है. ब्रह्मस्थान, गांधीपुर, नीरपुर, घोरघट के समीप एनएच-80 पर मवेशी पालक दया यादव, ललन सिंह, रंजन कुमार, रजनीश सिंह सहित दर्जनों किसानों ने बताया कि हम लोगों के लिए जीविकोपार्जन करने का एकमात्र सहारा मवेशी है. पर इस बाढ़ में मवेशी को जिंदा रख पाना बहुत मुश्किल हो रहा है. सूखा चारा भी नहीं मिल रहा है, क्योंकि गाड़ियों का आवागमन भी बाधित हो गया है. सरकार द्वारा चारे का वितरण भी नहीं किया गया. सूखा चारा खरीदने में मनमानी कीमत व्यापारी लेते हैं, जो गरीब मवेशी पालकों के लिए बहुत ही मुश्किल है. इधर बाढ़ के बीच फंसे लोग किसी तरह अपनी जिंदगी गांव में बीता रहे हैं. कोई छत पर गृहस्थी चला रहा है, तो कोई चौकी पर चूल्हा जला कर बच्चों के लिए भोजन बना रहा है.
जल स्तर में कमी, पर समस्या नहीं हो रही कम
गंगा के जल स्तर में भले ही कमी हो रही है, लेकिन जमालपुर के बाढ़ पीड़ितों की समस्याओं में कोई कमी नहीं दिख रही है.इंदरुख पश्चिमी पंचायत के डकरा सत खजुरिया क्षेत्र में उर्मिला देवी और रंजू देवी का परिवार घर में बाढ़ का पानी घुस जाने के कारण छत पर शरण ले रखा है. दोनों महिलाओं ने बताया कि पूरी गृहस्थी बाढ़ के कारण बर्बाद हो गयी है. छत पर दोहरी मार का सामना करना पड़ रहा है. घर के कमरे में बाढ़ का पानी है, तो खुले आसमान के नीचे खाना बनाना और खाना मजबूरी है. रात से बारिश के कारण छत पर शरण लेना भी कष्टप्रद हो गया है. उन्होंने बताया कि प्रशासन द्वारा डेढ़ किलोग्राम चूड़ा, 750 ग्राम चना और 500 ग्राम चीनी के साथ पॉलीथिन का वितरण किया गया है.हेरूदियारा में एनएच-80 के किनारे शरण ले रखे अभय मंडल ने बताया कि उनके परिवार में सात लोग हैं और एक ही तंबू में सभी लोगों को रात में शरण लेना पड़तीहै. वे लोग पांच दिन पहले यहां रहने आए हैं. अभी भी उनके मकान में डेढ़-दो फीट से अधिक पानी लगा है. शोभा देवी ने बताया कि बाढ़ का पानी घर में प्रवेश कर जाने के बाद कोई दूसरा विकल्प नहीं था. इस बार इस क्षेत्र में सामुदायिक किचन नहीं चलाया जा रहा है. सरकारी राहत सामग्री भी पर्याप्त नहीं है.धारो देवी ने बताया कि वह अपने चार पुत्रों के परिवार के साथ एक ही तंबू में रहने के लिए विवश हैं.सड़क पर रहना कितना कष्टदायक होता है, यह देखने से ही पता चल जाता है. सूखा भोजन प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराया गया, जो नाकाफी है. संजू देवी, सुनीता देवी ने प्रशासनिक राहत को नाकाफी करार दिया.