व्यक्ति के जीवन में निरंतर बनी रहती है ईश्वर की कृपा : स्वामी निरंजनानंद
बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा कि ईश्वर की कृपा निरंतर हर व्यक्ति के जीवन में होती है. वह केवल उसके प्रति सजग नहीं होता.
प्रतिनिधि, मुंगेर. बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा कि ईश्वर की कृपा निरंतर हर व्यक्ति के जीवन में होती है. वह केवल उसके प्रति सजग नहीं होता. वे पादुका दर्शन में चल रहे श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ के तीसरे दिन मंगलवार को आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि दैवी कृपा के संकेत पूर्वकाल से ही मिलते आ रहे है. 13 वर्ष पूर्व लक्ष्मीनारायण महायज्ञ में यज्ञ परिसर पादुका दर्शन आश्रम के पीछे हिरण का एक जोड़ा देखा गया था. मानो मां लक्ष्मी और भगवान नारायण स्वयं ही यज्ञ में अपनी हाजिरी बनाने आये थे. इस वर्ष का संकेत तो अपने-आप में ही एक हर्षदायक संकेत है. स्वामी जी को एक व्यक्ति ने एक किताब दी. जब उस किताब को खोला गया तो पहले ही पृष्ठ पर स्वामी शिवानंद का हस्ताक्षर था. उस किताब का नाम है भारतीय धर्म शास्त्र की संपूर्ण रूपरेखा. स्वामी शिवानंद की संन्यास शताब्दी के वर्ष में श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के दौरान इस किताब का यहां आना उनके आशीर्वाद का प्रतीक है. यह यज्ञ भी स्वामी शिवानंद की शिक्षाओं, संकल्प व प्रेरणा को समर्पित है. स्वामी शिवानंद व सत्यानंद की चर्चा करते हुए स्वामी निरंजनानंद ने कहा कि यह जोड़ी न भूतो न भविष्य है. इन दोनों महात्माओं के जीवन में केवल पूर्णता दिखलाई देती है. ऐसी पूर्णता जैसे कि एक पात्र है जो पानी से भरा हुआ है. पानी उसमें से छलक रहा है, लेकिन पात्र फिर भी पूरा भरा है. इस पूर्णता का उल्लेख शांति मंत्र में भी है. उन्होंने कहा कि स्वामी शिवानंद की शिक्षाओं को स्वामी सत्यानंद ने अपना जीवनशैली बना लिया. जहां गुरु व शिष्य के बीच का भेद समाप्त हो जाता है. वहां एक ही जीवनशैली रहती है अद्वैत की. स्वामी जी की केवल दो ही इच्छाएं रही. व्यावहारिक और वैज्ञानिक योग का प्रचार और अपने गुरु की शिक्षाओं के अनुसार अपने जीवन को चलाना व दूसरों की सहायता के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहना. अपने गुरु के बहुआयामी आचरण व व्यक्तित्व को उनके आदेश का पालन करें स्वामी जी ने सम्मानित किया. प्रवचन से पूर्व पूरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर से महाप्रसाद का आगमन यज्ञ भूमि पर हुआ.
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