स्वामी सत्यानंद ने अपने जीवन को गुरु सेवा में कर दिया था समर्पित : स्वामी निरंजनानंद

स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा कि स्वामी सत्यानंद के पूर्वाश्रम की यात्रा एक साधारण यात्रा नहीं थी, बल्कि एक आध्यात्मिक जीवन यात्रा थी. उन्होंने अपने जीवन को गुरु सेवा में समर्पित किया

By Prabhat Khabar News Desk | August 28, 2024 11:41 PM

प्रतिनिधि, मुंगेर. स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा कि स्वामी सत्यानंद के पूर्वाश्रम की यात्रा एक साधारण यात्रा नहीं थी, बल्कि एक आध्यात्मिक जीवन यात्रा थी. उन्होंने अपने जीवन को गुरु सेवा में समर्पित किया और उनकी शिक्षाओं को प्रसारित किया. ये बातें पादुका दर्शन संन्यासपीठ में आयोजित कार्यक्रम में अपने गुरु स्वामी सत्यानंद के विषय पर चर्चा करते हुए कही. उन्होंने कहा कि उनके गुरु स्वामी सत्यानंद का जन्म 24 दिसंबर 1923 की मध्य रात अल्मोड़ा के पास कुमाऊ क्षेत्र में हुआ था. उनके जीवन के पहले 20 वर्षों में घटित कुछ मुख्य बिंदुओं का वर्णन करते हुए कहा कि उनका नाम धर्मेंद्र रखा जाना, जो उनके जीवन की दिशा का आधारशीला बना. उनका ध्यान व समाधि की उच्च अवस्थाओं में भ्रमण करना जो कि उनके पूर्व जन्म के आध्यात्मिक संस्कार को दर्शाता था. स्वामी श्रद्धानंद द्वारा योगदंड व गेरू वस्त्र प्राप्त होना. विद्यालय में उनकी मेधा का प्राकट्य होना. बहुप्रतिभा से युक्त स्वामी सत्यानंद जीवन के प्रति संवेदनशील थे. फिर उनका नागा योगिनी से मिलना जिसने उनको कुंडलिनी, तंत्र, दर्शन आदि के विषयों के बारे में बताया और उसका अनुभव उनको स्वयं हुआ था. फिर उस योगिनी का उनको गुरु की खोज में जाने के लिए प्रेरित करना. यह क्रम एक यात्रा को दर्शाता है. जिस पर स्वामी सत्यानंद आगे बढ़ते गये. अपने पिता को संन्यास लेने का निर्णय सुनाया तो उनका आखरी वाक्य यही था कि पीछे मुड़कर कभी मत देखना आर यही वाक्य स्वामी सत्यानंद के जीवन का सिद्धांत बना.

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