Munger news : सरकार द्वारा 2025 तक जहां पूरे देश को टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है, वहीं 2030 तक देश को हेपेटाइटिस मुक्त बनाने का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है. इसके लिए केंद्र व राज्य सरकारें न केवल करोड़ों रुपये खर्च कर रही हैं, बल्कि लगातार समीक्षा व स्वास्थ्य योजनाओं के लिए कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. पर, मुंगेर में स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के कारण इन योजनाओं को ग्रहण लगता जा रहा है. हाल यह है कि मुंगेर में टीबी व हेपेटाइटिस मुक्त स्वास्थ्य योजनाएं केवल फाइलों में ही सिमट कर रह गयी हैं. इसके कारण केवल जून माह में ही मुंगेर सदर अस्पताल में टीबी व हेपेटाइटिस के चार मरीजों की मौत हो चुकी है, जबकि दोनों बीमारियों के आठ से अधिक मरीज भर्ती हुयेहैं.
फाइलों में ही सिमटीं कई स्वास्थ्य योजनाएं
सदर अस्पताल में जून माह के 22 दिनों में ही टीबी व हेपेटाइटिस से कुल चार मरीजों की मौत हो चुकी है. बता दें कि सदर अस्पताल में जहां 15 जून को टीबी से दो मरीजों की मौत हो गयी, वहीं 15 से 16 जून के बीच हेपेटाइटिस से दो मरीजों की मौत हो चुकी है. इसमें एक मरीज मुंगेर मंडल कारा का कैदी था. बता दें कि 15 जून को जहां हेपेटाइटिस से हवेली खड़गपुर के एक मरीज की मौत सदर अस्पताल में हो गयी थी, वहीं 16 जून को सदर अस्पताल में मंडल कारा के एक कैदी की मौत इलाज के दौरान हो गयी थी.
चार माह में भर्ती हुए टीबी के 22 व हेपेटाइटिस के 08 मरीज
मुंगेर में टीबी की बीमारी को लेकर स्वास्थ्य विभाग के जागरूकता व इलाज का हाल यह है कि केवल जिला मुख्यालय में बने सदर अस्पताल में जनवरी से अप्रैल के बीच जहां 22 टीबी के मरीज इलाज के लिए भर्ती हुये, वहीं हेपेटाइटिस के आठ मरीज इलाज के लिए भर्ती हुए हैं. जनवरी माह में जहां टीबी के चार मरीज भर्ती हुए, वहीं फरवरी में सर्वाधिक 12 टीबी के मरीज भर्ती हुए. मार्च व अप्रैल माह में 4-4 टीबी के मरीज सदर अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती हुए. मई माह में टीबी के छह मरीज भर्ती हुए. जनवरी से जून माह में अबतक हेपेटाइटिस के आठ मरीज भर्ती हुए हैं.
टीबी व हेपेटाइटिस मरीजों के लिए अलग से वार्ड तक नहीं
लगभग 16 लाख जनसंख्या वाले मुंगेर सदर अस्पताल में टीबी व हेपेटाइटिस मरीजों के लिए अलग से वार्ड तक उपलब्ध नहीं है. इसके कारण सालों से सामान्य वार्डों में ही टीबी व हेपेटाइटिस के मरीजों को भर्ती किया जा रहा है. यहां उनका इलाज भी सामान्य चिकित्सकों के भरोसे ही होता है. यक्ष्मा विभाग से अधिकारी या कर्मी वार्डों में भर्ती टीबी के मरीजों को देखने तक नहीं आते हैं. हद तो यह है कि यदि किसी टीबी के मरीज के साथ उसके परिजन न हों तो उसके लिये यक्ष्मा विभाग से दवा लाना भी मुश्किल हो जाता है. ऐसे में जिले में टीबी के मरीजों को मिल रही स्वास्थ्य सुविधाओं का अंदाजा लगाया जा सकता है. इस संबंध में सिविल सर्जन डॉ विनोद कुमार सिन्हा ने बताया कि 100 बेड के मॉडल अस्पताल में अलग से वार्ड की व्यवस्था होगी.स्वास्थ्य योजनाओं की लगातार समीक्षा की जा रही है. इससे विभाग को भी अवगत कराया जा रहा है.
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