प्रतिनिधि, मुंगेर. मुंगेर विश्वविद्यालय में वैसे तो कई विभागों की जिम्मेदारी एक से अधिक अधिकारी संभाल रहे हैं. उसमें भी आईसी लीगल जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण विभाग भी विश्वविद्यालय में इतिहास विषय के प्राध्यापक संभाल रहे हैं. हालांकि, एमयू में लीगल मामलों के अधिकारी भी केवल खानापूर्ति के लिये ही हैं, क्योंकि लीगल मामलों के सभी छोटे-बड़े फाइलों को मंतव्य के लिये पटना ही भेजा जाता है. जहां से जवाब आने तक या तो वह मामला फाइलों में ही दम तोड़ देता है, या खुद विश्वविद्यालय के अधिकारी उन मामलों को भूल जाते हैं. विदित हो कि विश्वविद्यालय में लॉ से जुड़े मामलों के लिये आईसी लीगल विभाग संचालित है. इसके लिये नियमानुसार कम से कम एलएलबी पास वाले अधिकारी को दायित्व दिया जाना है, जो लीगल मामलों के जानकार हों, लेकिन एमयू में पिछले एक साल से आईसी लीगल पदाधिकारी की जिम्मेदारी विश्वविद्यालय के इतिहास पीजी विभागाध्यक्ष संभाल रहे हैं. अब ऐसे में लीगल मामलों में एमयू प्रशासन कितना सजग है. इसका अंदाजा खुद ही लगाया जा सकता है. हद तो यह है कि एमयू के पास लीगल मामलों के लिये अधिवक्ताओं का पैनल तक नहीं है. फाइलों में ही दब कर रह जाते हैं मामले. एमयू में आईसी लीगल विभाग के नाम पर खानापूर्ति का ही नतीजा है कि विश्वविद्यालय के कई लीगल मामले फाइलों में ही सिमट कर रह जाते हैं. दिसंबर माह में सामने आये विश्वविद्यालय से गायब लैपटॉप और एप्पल मोबाइल मामले के लिये फरवरी माह में ही जांच कमेटी द्वारा अपनी रिपोर्ट दे दी गयी है, लेकिन उसके बाद से यह मामला आईसी लीगल के पास ही दो माह तक फंसा रहा. इसके अतिरिक्त एमयू में आउटसोर्सिंग एजेंसी को लेकर भी फाइल महीनों तक आईसी लीगल विभाग में ही फंसा रहा. इस कारण एमयू प्रशासन 12 माह बाद भी अपने आउटसोर्सिंग कर्मियों को वेतन देने के मामले पर कोई सही निर्णय नहीं ले पाया है. इससे पहले भी कई लीगल के मामले विभाग से पटना और पटना से वापस विभाग का चक्कर ही काटते रह गये.
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