प्रतिनिधि, मुंगेर. शहर के जैन धर्मशाला स्थित श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में दशलक्षण महापर्व पयुर्षण पर्व के नौवें दिन सोमवार को जैन धर्मावलंबियों ने उत्तम आकिंचन धर्म की उपासना की. मंदिर की मूल विधि पर भगवान पार्श्वनाथ का बड़े भावपूर्वक मार्जिन किया गया. अहिंसा सभागार में विधानमंडल के समीप विराजमान भगवान शांतिनाथ का अभिषेक शांति धारा एवं भव्य आरती की गयी. मध्य प्रदेश से पधारे भैया सुशील ने कहा कि हमारे आगम में मिथ्यात्व सबसे बड़ा परिग्रह है. इसी के कारण जीव की श्रद्धा विपरीत हो जाती है. शरीर के साथ तन्मय होकर शरीर को अपनी निजी वस्तु मान लेता है. जो गलत है. घर, धन, दौलत, बंधु-बाधव यहां तक की शरीर भी मेरा नहीं है. जीवन में इस प्रकार का अनशक्ति भाव उत्पन्न होना ही उत्तम अंकित धर्म बताया गया, यह हर पल ज्ञात होना चाहिए.सांसारिक सभी चीजों का त्याग होने के बाद ही उसे त्याग का महत्व हो सकता है. अतः अंतिम धर्म उसे त्याग के प्रति होने वाले ममत्व का त्याग करने की प्रेरणा देता है और उसी को उत्तम आकिंचन धर्म बताया गया है. उन्होंने “उत्तम क्षमा माधव आरजू भाव है, शौच सत्य संयम तब त्याग उपाव है, आकिंचन ब्रह्मचर्य धर्म दस सार है, चहूगति दुखते का ही मुक्ति करतार है ” श्लोक पढ़ा और उसके भाव को स्पष्ट किया. मौके पर जैन धर्मशास्त्र के संदेश समाज में सभी वर्गों में जाए इसके लिए भव्य रूप से प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया. जिसमें भजन गायन प्रतियोगिता, द्रव्य थाल सजाओ प्रतियोगिता, जैन क्विज एक मिनट प्रतियोगिता, जैन ज्ञान गंगा क्रिकेट प्रतियोगिता, युगल डांडिया नृत्य प्रतियोगिता, जैन तंबोला प्रतियोगिता शामिल है.
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