प्रतिनिधि, जमालपुर. शारदीय नवरात्र में रेल नगरी जमालपुर की प्रतिमा विसर्जन शोभा यात्रा ख्याति प्राप्त है. जिन ट्रालियों पर माता की प्रतिमा की शोभायात्रा निकाली जाती है. उन ट्रालियों को अलग-अलग पूजा समिति द्वारा अलग-अलग तरह से संदेशात्मक रूप से सजाया जाता है. ट्रालियों पर समसामयिक घटनाक्रम को बड़े ही बेहतरीन तरीके से उकेरा जाता है. इसे स्थानीय भाषा में “सीन-खेलान ” बोला जाता है. अब इन ट्रालियों को अंतिम रूप देने में कारीगर जुट चुके हैं.
सबसे पहले रेल कारखाना के कुशल इलेक्ट्रिशियन ने बनायी थी ट्रॉली पर झांकी
बताया जाता है कि विसर्जन शोभा यात्रा के दौरान जमालपुर की प्रतिमाओं को विसर्जन के लिए करीब 8 किलोमीटर दूर गंगा नदी के तट पर पहुंचाया जाता है. इसके लिए ट्रॉली का उपयोग किया जाता है. इसी ट्राली की झांकी ने जमालपुर को विशिष्ट स्थान दिलाया है. हालांकि, अब देखा देखी कई अन्य स्थानों पर भी ट्राली पर झांकी निकाली जाती है, परंतु जानकार बताते हैं कि रेल इंजन कारखाना जमालपुर के कुशल इलेक्ट्रिशियन द्वारा सबसे पहले विसर्जन शोभायात्रा की ट्रॉली पर झांकी निकालने की परंपरा की शुरुआत की गयी थी. इन झांकियाें को देखकर न केवल इसकी सराहना की जाती है, बल्कि यह झांकियां श्रद्धालुओं के मानस पटल पर काफी दिनों तक बनी रहती है और इसकी चर्चा भी होती रहती है. जमालपुर से मुंगेर तक की यात्रा के दौरान सड़क के दोनों और श्रद्धालु जमालपुर की प्रतिमा के साथ ही इन झांकियां को देखने के लिए प्रतीक्षा में खड़े रहते हैं.
अलग-अलग चरण में झांकी का होता है निर्माण
ट्रॉली पर झांकी बनाने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है. सबसे पहले ट्रॉली के नाप का हार्ड बोर्ड या प्लाईवुड लिया जाता है. इसके बाद कारीगर अपने दिमाग से समसामयिक घटना राजनीतिक घटनाक्रम या अन्य विषय पर पेंटर से विषय वस्तु को चित्रित करते हुए चित्र तैयार करवाते हैं. इसके बाद उस पर बिजली के छोटे-छोटे बल्ब के लिए छेद किए जाते हैं और उन छेद में बल्ब को लगाया जाता है. इसके बाद इस झांकी को अंतिम रूप देने के लिए एक हैंडमेड चेंजर को लगाया जाता है. जो काफी ही कठिन कार्य होता है. यही कारण है कि झांकी तैयार करने के लिए बिजली मिस्त्री मोटी रकम लेते हैं. इतना ही नहीं जिस मिस्त्री ने झांकी तैयार की है. उन्हें स्वयं या अपने आदमी को ट्राली के साथ मुंगेर तक ट्राली के साथ भेजना पड़ता है.
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