हर मनुष्य को अपने जीवन में अपनाना चाहिए उत्तम संयम धर्म
जैन धर्मशाला स्थित श्री पार्श्वनाथ दिगंबर मंदिर में लगातार पर्युषण महापर्व, दशलक्षण पर्व मनाया जा रहा है.
जैन समुदाय के लोगों ने पर्युषण महापर्व के छठे दिन मनाया आत्मा के शुद्धि का पर्व, प्रतिनिधि, मुंगेर. जैन धर्मशाला स्थित श्री पार्श्वनाथ दिगंबर मंदिर में लगातार पर्युषण महापर्व, दशलक्षण पर्व मनाया जा रहा है. छठे दिन शुक्रवार को उत्तम संयम धर्म दिवस के रूप में मनाया. सुबह में भगवान का अभिषेक किया गया. जिसके बाद आरती की गयी. जैन समुदाय के श्रद्धालुओं ने बड़े धूमधाम से नियम पूर्वक इस पर्व को मना रहे है. भैया सुशील ने कहा कि हमारे पूज्य गुरुदेव प्रातः स्मरणीय आचार्य श्री प्रमुख सागर जी जो जैन दिगंबर परंपरा के आचार्य हैं. अपनी वाणी में रहते हैं कि संसार में संयम को पालने आये थे. शरीर की शक्ति चली गयी. बचपन बीता खेल कूद में, भोगों में जवानी चली गयी, बुढ़ापे का पैगाम आया जब, सिर पर तो कानों में आवाज और आंखों की रोशनी चली गयी. आचार्य श्री ने दो प्रकार के संयम बताएं हैं प्राणी संयम और इंद्रिय संयम. इंद्रियों के कारण हर जगह सांसारिक भोगों में लगे हुए हैं और प्राणी संयम दूसरों को घात करने में लगे हुए हैं. अतः संयम धर्म को जीवन में अपनाना चाहिए. संयम धर्म के स का मतलब सिद्ध होना, य का मतलब यमराज को जीतने वाला और म का मतलब मोक्ष मार्ग की सीडीओ को प्राप्त करने वाला. संयम का अर्थ है कि अपने जीवन में उत्तम संयम धर्म का पालन अपनाना चाहिए. विदित हो कि दशलक्षण पर्व में जैन धर्म के जातक अपने मुख्य दस लक्षणों को जागृत करने की कोशिश करते हैं जैन धर्मानुसार दस लक्षणों का पालन करने से मनुष्य को इस संसार से मुक्ति मिल सकती है. मौके पर बड़ी संख्या में जैन समुदाय के श्रद्धालु मौजूद थे.
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