Munger news : मुंगेर में बने सूप पर सजेगा कर्नाटक का नारियल व कश्मीर का सेब, 20 करोड़ का होगा कारोबार
Munger news : छठ पर्व अर्थव्यवस्था से भी जुड़ा हुआ है, जो सिर्फ मुंगेर बाजार ही नहीं, बल्कि बिहार व दूसरे प्रदेशों की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करता है.
Munger news : लोक आस्था का महापर्व छठ बड़का पर्व के नाम से प्रसिद्ध है. इसमें नेम, निष्ठा और श्रद्धा का महत्वपूर्ण स्थान है. यह पर्व प्रकृति से सीधे जुड़ा हुआ है और प्रकृति से प्राप्त होनेवाले फल, अनाज से ही इस पर्व में पूजा-अर्चना होती है. इसलिए इस पर्व में फलों का अहम योगदान है. यह पर्व अर्थव्यवस्था से भी जुड़ा हुआ है, जो सिर्फ मुंगेर बाजार ही नहीं, बल्कि बिहार व दूसरे प्रदेशों की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करता है. क्योंकि इस पर्व में जिन फलों का उपयोग होता है, वह दूसरे प्रदेश से मुंगेर आते हैं. इस बार 20 करोड़ से अधिक का कारोबार फलों का होगा. इसे लेकर फल मंडी में फलों का स्टॉक किया गया है, जिसकी बिक्री पिछले दो दिनों से परवान पर है.
स्थानीय फलों को भी सूप में मिलेगी जगह
लोक आस्था के महापर्व छठ के अवसर पर इस बार फल मंडी में विशेष तैयारियां की गयी हैं, क्योंकि इस पर्व में फलों का अहम योगदान होता है. व्रती भगवान सूर्य और छठी मैया को ये फल अर्पित करते हैं. हाजीपुर, कटिहार व नवगछिया का केला, हिमाचल व कश्मीर का सेब, पश्चिम बंगाल, केरल व कर्नाटक का नारियल एवं महाराष्ट्र के नासिक व नागपुर के नारंगी से मुंगेर में के सूप सजेंगे. स्थानीय उत्पाद ओल, कच्चू, हल्दी, केला आदि को भी छठ के सूप में जगह मिलेगी. इतना ही नहीं हिमाचल प्रदेश व राजस्थान के बाॅर्डर पर स्थित श्रीगंगा सागर से किन्नू ( संतरा का क्लोन) मंगाया गया है. दूसरे प्रदेश के मंगाये गये फलों को सूप पर सजा कर अस्ताचलगामी व उदयाचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ दिया जायेगा.
फलों की खुशबू से गुलजार हो रही फल मंडी
छठ पर्व को लेकर फल मंडी व बाजार फलों से सज गये हैं. शहर के फल मंडी इंदिरा गांधी चौक, श्रवण बाजार में फलों की थोक मंडियां सज गयी हैं. शहर की मुख्य सड़कों के अलावा बाजार के अन्य हिस्सों में फलों का ठेला लगा हुआ है. फल मंडी में जहां थोक में लोग फलों की खरीदारी कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बाजार में फुटपाथी दुकानों पर खरीदारों की भीड़ फल खरीदने को उमड़ रही है.भीड़ से बचने के लिए नहाय-खाय वाले दिन से ही लोग फलों की खरीद कर रहे हैं.
गन्ने का टाल त्योहार की बढ़ा रहा शान
छठ पर्व पर फलों के साथ ही गन्ना (केतारी) की बिक्री जोरों पर है. दिलीप बाबू धर्मशाला के निकट के गन्ने का टाल व्यापारियों ने लगा रखा है. जिले के असरगंज सहित अन्य क्षेत्रों से ट्रैक्टर व ट्रक पर लाद कर यहां गन्ना लाया गया है. एक नंबर ट्रैफिक के चारों ओर गन्ने को सजा कर बेचने का काम दुकानदार कर रहे हैं.
फलों का खुदरा बाजार भाव
नारियल – 40 से 70 रुपये प्रति पीस, सेब – 100 से 150 रुपये प्रति किलो, नारंगी – 50 से 100 रुपये प्रति किलो, पनियाला – 100 से 120 रुपये प्रति 100 ग्राम, नाशपाती – 60 से 80 रुपये प्रति किलो, अमरूद – 60 से 80 रुपये प्रति किलो, गन्ना – 20 से 30 रुपये प्रति पीस, कच्चा हल्दी पौधा – 300 रुपये का 100 ग्राम, पानी फल – 60 से 80 रुपये प्रति किलो, टाबा नींबू – 60 से 80 रुपये पीस.
नक्सल प्रभावित बंगलवा का सूप व डाला कई जिलों में है मशहूर
लोक आस्था का महापर्व छठ मंगलवार को नहाय-खाय के साथ प्रारंभ हो गया है. इसे लेकर मुंगेर जिले के धरहरा प्रखंड के विभिन्न बाजारों में सूप, डाला सहित फलों से बाजार सजा हुआ है. नक्सल प्रभावित पंचायत बंगलवा में तूरी समुदाय के लोग डाला एवं सूप बनाने में लगे हुए हैं. इनका सूप व डाला न केवल मुंगेर, बल्कि प्रदेश के अन्य जिलों में भी काफी मशहूर है. बता दें कि बंगलवा पंचायत में बंगलवा लवटोलिया, सराधी तथा करेली में बांसफोड़ समाज के लोग रहते हैं, जो पूरे साल तो मजदूरी करते हैं, लेकिन छठ महापर्व आने के साथ ही पूरा समाज डाला व सूप बनाने में जुट जाता है.
मेहनत का नहीं मिलता उचित दाम
तुरी समुदाय द्वारा बनाया गया डाला तथा सूप की मांग मुंगेर जिले से बाहर दूसरे जिला में भी रहती है. इस कारण से बंगलवा से डाला तथा सूप बनकर मुंगेर जिले के विभिन्न गांवों के साथ-साथ लखीसराय, पटना, खगड़िया, बेगूसराय समेत अन्य दूसरे जिलाें में भी जाता है.तूरी समाज की सीता देवी, कलावती देवी आदि ने बताया कि छठ के दौरान पूरा परिवार डाला तथा सूप बनाने में लग जाता है. पर, सुविधा नहीं होने के कारण हमारी मेहनत महाजनों के हाथों में चली जाती है. पिछले वर्ष जिस दाम पर सूप तथा डाला की खरीदारी महाजन ने की थी, उसी मूल्य पर इस बार भी महाजन डाला तथा सूप ले रहे हैं. महंगाई के कारण इस स्वरोजगार से अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. तुरी समुदाय के लोगों ने बताया कि बंगलवालवटोलिया गांव में करीब 40 घर तुरी समुदाय का है. प्रत्येक घर की महिलाएं जीविका से जुड़ी हुई हैं, पर सरकार की योजना उनसे काफी दूर है. अगर सरकार तुरी समुदाय की जीविका से जुड़ी महिलाओं को कम कीमत पर बांस की उपलब्धता सुनिश्चित करवा दे, तो वे लोग बंछुआ की जीवनशैली से बाहर निकल सकेंगे.