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मुंगेर सदर अस्पताल : पोस्टमार्टम कराने में पुलिस व पीड़ित परिवार की छुटती है पसीना

अस्पताल उपाधीक्षक कार्यालय में जब पोस्टमार्टम कराने के लिए कागज जमा किया गया तो कहा गया कि पहले पोस्टमार्टमकर्मी को ढूढ़ कर ले आइये.

– चिकित्सक ने कहा कि पोस्टमार्टमकर्मी को ढूढ़ कर लायेंगे तभी होगा पोस्टमार्टम, कोतवाल ने हड़काया तो हुआ पोस्टमार्टम

मुंगेर

मुंगेर सदर अस्पताल में स्थाई तौर पर पोस्टमार्टमकर्मी नहीं है. जिस प्राइवेट व्यक्ति के कंधों पर इसकी जिम्मेदारी दी गयी है, उसे मनमानी करने की पूरी छूट मिली हुई है. जिसके कारण शव का पोस्टमार्टम कराने में पीड़ित परिवार के साथ पुलिस का पसीना छूट जाती है. हद तो तब होता है जब अज्ञात शव लेकर पुलिस पोस्टमार्टम कराने पहुंचती है.

अज्ञात शव का पोस्टमार्टम कराने में कोतवाली थाना पुलिस का छूटा पसीना

शुक्रवार की सुबह 10 बजे के करीब कोतवाली थाना पुलिस एक अज्ञात शव को लेकर पोस्टमार्टम कराने सदर अस्पताल पहुंचा. अस्पताल उपाधीक्षक कार्यालय में जब पोस्टमार्टम कराने के लिए कागज जमा किया गया तो कहा गया कि पहले पोस्टमार्टमकर्मी को ढूढ़ कर ले आइये. जिसके बाद हम पोस्टमार्टम करने जायेंगे. जब पुलिस ने कहा कि यह काम अस्पताल प्रबंधन का है तो चिकित्सक ने सीधे कहा कि जब तक पोस्टमार्टम कर्मी नहीं आता, हम वहां जाकर क्या करेंगे. पुलिसकर्मी की सूचना पर कोतवाली थानाध्यक्ष राजीव तिवारी अस्पताल पहुंचे और चिकित्सक को कहा कि आप पोस्टमार्टमकर्मी को ढूढ़ें, हम कहां ढूढ़ने जायेंगे. बावजूद चिकित्सक अपनी बातों पर अड़ा रहा. जिसके बाद थानाध्यक्ष ने सिविल सर्जन व अन्य को इस बारे में शिकायत किया. जिसके बाद पोस्टमार्टम कर्मी तो पहुंच गया. लेकिन शव उठाने वाला कोई नहीं था. जिस ठेला पर शव उठा कर लाया गया था. उस ठेला वाले ने पोस्टमार्टम हाउस में शव को पटक कर चलता बना. बाद में पुलिसकर्मी के सहयोग से प्राइवेट पोस्टमार्टमकर्मी शव को अंदर ले गया और चिकित्सक ने पोस्टमार्टम किया.

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रिक्त है पोस्टमार्टमकर्मी का पद, प्राइवेट व्यक्ति ने संभाल रखी है जिम्मेदारी

मुंगेर :

पोस्टमार्टमकर्मी रविंद्र डोम की मौत कई साल पूर्व हो गयी. जिसके बाद पोस्टमार्टमकर्मी का पद रिक्त चल रहा है. उसकी मौत के बाद एक प्राइवेट व्यक्ति ने पोस्टमार्टम हाउस की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले लिया. कुछ दिनों तक तो उसे रोगी कल्याण समिति द्वारा कुछ मानदेय दिये जाते है. बाद में उसे भी बंद कर दिया गया. जिसके बाद वह अपने जिम्मेदारी को भूल गया. हालांकि जब भी शव का पोस्टमार्टम होना होता है तो उक्त प्राइवेटकर्मी को ढूढ़ा जाता है. जब तक वह नहीं मिल जाता है, तब तक शव का पोस्टमार्टम नहीं हो पाता है. शव को लाने वाले उसके परिजन अथवा पुलिस को उक्त प्राइवेटकर्मी को ढूढ़ कर लाना पड़ता है.

पुलिस तक को देना पड़ता है नजराना

शव का पोस्टमार्टम कराने के लिए पहुंचने वालों को आम लोगों के साथ ही पुलिस को नजराना देना पड़ता है. पीड़ित परिवार से यहां हजार से दो हजार रूपया वसूल किया जाता है. जबकि पुलिसकर्मियों को यहां नजराना देना पड़ता है. शुक्रवार को पोस्टमार्टम कराने एक दारोगा ने बताया कि 500 रूपया शव का पोस्टमार्टम कराने के लिए यहां देना पड़ा. नहीं देने पर शव को अंदर तक उठा कर नहीं ले जाता है. पोस्टमार्टम के बाद अगर अज्ञात शव को पोस्टमार्टम हाउस में रखना पड़ता है तो हमारे सिपाही व चौकीदार को ही शव उठा कर वहां तक ले जाना पड़ता है. अगर इससे बचना है तो उसके एवज में भी पैसा देना पड़ता है.

कहते हैं अस्पताल उपाधीक्षक

सदर अस्पताल उपाधीक्षक डॉ रमण कुमार ने बताया कि यहां पोस्टमार्टमकर्मी का पद रिक्त है. लेकिन एक प्राइवेट व्यक्ति को यहां इसके लिए रखा गया. बहुत दिनों तक उसे किसी प्रकार का मानदेय नहीं मिलता था. लेकिन हाल के दिनों में उसे प्रति केश 350 रूपया दिया जाता है. कार्यालय अवधी में उनको यहां रहना है. उन्होंने बताया कि शुक्रवार को क्यों पोस्टमार्टम कराने में विलंब हुआ. उसकी जांच करायी जायेगी.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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