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स्वामी सत्यानंद ने अपने गुरू स्वामी शिवानंद के सेवा, प्रेम व दान की शिक्षा को दिया मूर्त रूप : स्वामी निरंजनानंद

किस प्रकार मुंगेर में योग आंदोलन स्थापित करने करने के बाद वे देवघर के रिखियापीठ में स्वामी शिवानंद के सेवा, प्रेम और दान की शिक्षा को मूर्त रूप दिया.

पादुका दर्शन संन्यास पीठ में गुरु पूर्णिमा महोत्सव पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ मुंगेर पादुका दर्शन संन्यास पीठ में गुरु पूर्णिमा महोत्सव के दूसरे दिन शुक्रवार को श्रद्धा व भक्ति का आवेग फूट पड़ा. स्वामी निरंजनानंद सरस्वती का कथा श्रवण के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु नर-नारियों के साथ ही युवाओं ने भाग लिया और गुरु के महत्व को अपने जीवन में आत्मसात किया. स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने स्वामी सत्यानंद के जीवन के अगले अध्याय पर प्रकाश डालते हुए बताया कि किस प्रकार मुंगेर में योग आंदोलन स्थापित करने करने के बाद वे देवघर के रिखियापीठ में स्वामी शिवानंद के सेवा, प्रेम और दान की शिक्षा को मूर्त रूप दिया. उन्होंने कहा कि स्वामी सत्यानंद का अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण था. जिस कारण वे अपने गुरु के ज्ञान और शक्ति के उत्तम संवाहक बन पाये. स्वामी शिवानंद का मुख्य ध्येय दिव्य जीवन जीना था. जिसके लिए उन्होंने अष्टांग शिवानंद योग प्रतिपादित किया था और उसी के प्रथम अंगों में सेवा, प्रेम, दान, शुद्धिकरण, अच्चे बनों और अच्छा करों को स्वामीजी ने रिखियापीठ में जीवंत किया. उन्होंने आम लोगों के जीवन में गुरु की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि स्वामी शिवानन्द जी कहा करते थे कि गुरु के प्रति आज्ञाकारिता गुरु-आराधना से भी श्रेष्ठ है. अगर वास्तव में शिष्य रुप में तुम गुरु की आराधना करना चाहते हो तो उनकी आज्ञा का पालन करो. वही सबसे बड़ी आराधना है. इस मौके पर भजन-कीर्तन का भी आयोजन किया गया.

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