मुंगेर. ठंड के दिनों में मवेशियों में बीमारी का खतरा बढ़ जाता है. खुरहा, मुंहपका रोग, अफारा, निमोनिया रोग, ठंड लगना, गलाघोंटू, लंगडी, भेड़, चेचक जैसी रोगों के होने की संभावनाएं रहती है. खास कर गर्भवती मवेशी व दुधारू मवेशी इस ठंड में अधिक बीमार होते हैं. अगर मवेशी इन सभी में से एक भी रोग की चपेट में आ जाता है तो पशुपालक की परेशानी बढ़ जाती है. वहीं दूसरी ओर जिला पशु अस्पताल का हाल बेहाल है. क्योंकि यह अस्पताल चिकित्सक, कर्मी, दवा व संसाधनों से जूझ रहा है.
10 स्वीकृत पद में से मात्र एक चिकित्सक की है तैनाती
जिला पशु औषधायल 2017 से ही 24 घंटे संचालित किया जा रहा है. यानी बीमार पशुओं का यहां 24 घंटे इलाज की सुविधा प्रदान करना है. लेकिन यह पशु अस्पताल आज मैन पावर की कमी से जूझ रहा है. इस पशु अस्पताल के लिए 10 पद सृजित है. जिसमें पशु शल्य चिकत्सक की एक, कनीय पशु चिकित्सा पदाधिकारी का एक, लिपिक, पशुधन सहायक, मिश्रक, पट्टी बंधक, सांढ सेवक, कार्यालय परिचारी, चौकीदार व स्वीपर सह माली का एक-एक पद सृजित है. जिसमें मात्र एक पशु शल्य चिकत्सक के रूप में डॉ सत्यनारायण यादव की यहां तैनाती है. जबकि अन्य सभी पद यहां रिक्त है.
प्रतिनियुक्ति के भरोसे पशु अस्पताल
जिला पशु औषधायल वर्तमान समय में प्रतिनियुक्ति पर चल रहा है. जबकि यह अस्पताल तीन शिफ्ट में चलता है. सुबह 8:30 से अपराह्न 2:30 तक यहां ओपीडी सेवा दी जाती है. जबकि उसके बाद सिर्फ इमरजेंसी सेवा प्रदान किया जाता है. पशु विभाग के दूसरे कार्यालय से दो चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों की यहां प्रतिनियुक्ति की गयी. जबकि प्रखंड पशु अस्पताल व क्षेत्र में घूम-घूम कर इलाज करने वाले भ्रमणशील पशु चिकित्सा पदाधिकारी की प्रतिनियुक्ति की गयी है. जिसके कारण प्रखंड में बीमार पशुओं का इलाज बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है. क्योंकि उनके जिला पशु अस्पताल में प्रतिनियुक्ति होने से प्रखंड पशु अस्पताल में ताला लटक जाता है. इस परिस्थिति में बीमार पशुओं का इलाज न तो जिला पशु अस्पताल में सही ढंग से हो पाता है और न ही प्रखंड पशु अस्पताल में बीमार पशुओं को इलाज हो पाता है.
दवा व संसाधनों की भी कमी झेल रहा पशु अस्पताल
बताया जाता है कि यहां संसाधनों का भी अभाव है. जबकि दवा की किल्लत यहां हमेशा बनी रहती है. सरकार की ओर से पशु अस्पताल में 42 प्रकार की दवा रखने का निर्देश है. लेकिन यहां पर मात्र 32 प्रकार की ही दवा उपलब्ध है. यानी 10 प्रकार की दवा और अन्य दवा पशुपालकों को बाजार से खरीदना पड़ रहा है.
एंटी रेबीज इंजेक्शन नहीं है उपलब्ध
जिला पशु अस्पताल में एंटी रेबीज इंजेक्शन की सुविधा नहीं दी जाती है. विभाग की मानें तो सरकार स्तर से ही अस्पताल के एंटी रेबीज इंजेक्शन अप्रूवल नहीं है. जिसके कारण पशु चिकित्सा केंद्रों पर एंटी रेबीज इंजेक्शन की आपूर्ति नहीं की जाती है. मजबूरन पशुपालकों को अपने जानवरों को जरूरत पड़ने पर यह इंजेक्शन मनमाने दामों पर बाजार से खरीदना पड़ रहा है. जबकि पशुओं को खुले मैदान में अक्सर कुत्ते काट लेते हैं. जबकि शियार, लोमड़ी व अन्य रेबीज वाला जानवार काट लेता है तो उसे एंटी रेबीज इंजेक्शन देने की जरूरत है. अगर किसी बकरी के बच्चे को कुत्ता या लोमड़ी काट ले और यह तय हो जाय कि वह रेबीज डॉग या शियार व लोमड़ी है तो उस बकरी के बच्चे को सात एंटी रेबीज इंजेक्शन देना पड़ता है. एक एंटी रेबीज इंजेक्शन की कीमत बाजार में 150 से 160 रूपये पड़ता है. अगर सात इंजेक्शन देने की जरूरत पड़ी तो बकरी के बच्चे का जितना कीमत होगा, उससे कहीं अधिक कीमत इंजेक्शन की हो जायेगी. यहां मैन पावर की कमी है. लेकिन प्रतिनियुक्ति पर यहां चिकित्सक व स्टाफ हैं, जिससे यहां काम किसी प्रकार चल रहा है. प्रतिदिन यहां 70 से 80 पशुओं का इलाज किया जाता है. जिसमें बकरी, कुत्ता व बिल्ली की संख्या अधिक होती हैं.
डॉ सत्यनारायण यादव, पशु शैल्य चिकित्सक, जिला पशु औषधायलB
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