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मुजफ्फपुर के एसकेएमसीएच डॉक्टरों की हड़ताल आज, जूनियर डॉक्टरों ने बंद करायी ओपीडी, 1800 मरीज लौटे

मुजफ्फपुर के एसकेएमसीएच जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल के कारण मरीजों को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. ये हड़ताल आज भी जारी है. मंगलवार को 2017 बैच के प्रशिक्षु डॉक्टरों ने धरना-प्रदर्शन किया. करीब 1800 मरीज इलाज से वंचित रहे. हालांकि अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में गंभीर मरीजों का इलाज होता रहा.

श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टरों ने मासिक भत्ता (स्टाइपेंड) बढ़ाने के लिए मंगलवार को दूसरे दिन भी एसकेएमसीएच में ओपीडी सेवा बाधित कर दी. हालांकि इस दौरान इमरजेंसी सेवा चालू रही, जहां गंभीर मरीजों का इलाज होता रहा. ओपीडी में इलाज कराने आये 1800 से अधिक मरीजों का इलाज नहीं हो सका. जूनियर डॉक्टर अपनी मांगों को लेकर दिन भर धरना-प्रदर्शन करते रहे. इस दौरान अधीक्षक बाबू साहब झा ने इन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन वे अपनी मांग पर अड़े रहे. अधीक्षक बाबू साहब झा ने कहा कि सुबह आठ बजे से दस बजे तक ओपीडी में मरीजों का इलाज हुआ है. महंगाई बढ़ी है, तो मासिक भत्ता भी बढ़ना चाहिए. उन्होंने जूनियर डॉक्टरों की मांग सरकार को भेज दी है. कहा कि जूनियर डॉक्टर अगर उपद्रव करेंगे, तो उनके खिलाफ कार्रवाई होगी.

प्रशिक्षु डॉक्टरों को मिले 35 हजार स्टाइपेंड

जूनियर डॉक्टरों का कहना था कि बिहार के ही दूसरे मेडिकल कॉलेजों में प्रशिक्षु डॉक्टरों को अधिक स्टाइपेंड दिया जाता है. जूनियर डॉक्टर रीतिका राज, डॉ विश्वजीत कुमार का कहना था कि वर्ष 2020 कोविड के दौरान जूनियर डॉक्टरों ने बेहतर काम किया था. सरकार ने आश्वासन दिया था कि उनका मासिक भत्ता 15 हजार रुपये से बढ़ाया जायेगा. आइजीआइएमएस पटना में 26 हजार 300 रुपये, एम्स पटना में 26 हजार 300 रुपये, पश्चिम बंगाल में 29 हजार रुपये, असम में 31 हजार रुपये और रिम्स रांची में 31 हजार रुपये स्टाइपेंड दिया जाता है. एसकेएसमीएच में सिर्फ 15 हजार रुपये स्टाइपेंड मिलता है, जो बहुत कम है. प्रशिक्षु डॉक्टरों ने स्टाइपेंड 35 हजार रुपये प्रतिमाह करने की मांग की है.

2017 के बाद से एसकेएमसीएच में स्टाइपेंड नहीं बढ़ा

डॉ विश्वजीत कुमार ने कहा है कि वर्ष 2017 के बाद से एसकेएमसीएच में स्टाइपेंड नहीं बढ़ाया गया है. जूनियर डॉक्टरों ने कहा कि कार्य बहिष्कार की सूचना एसकेएमसीएच के प्राचार्य व अधीक्षक को पहले ही दे दी गयी थी. सरकार उनकी मांग को पूरा नहीं कर रही है. इंटर्न छात्रों ने मानदेय बढ़ाने के लिए पिछले साल अक्तूबर में भी कार्य बहिष्कार किया था. हालांकि, स्वास्थ्य विभाग के आश्वासन पर उसे एक दिन में ही खत्म कर दिया गया था.

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