Muzaffarpur: सुधीर कुशवाहा की एनआइए कोर्ट में होगी पेशी, जानें कैसे बना जाली नोट तस्करी का बादशाह

Muzaffarpur के शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा में बंद जाली नोट तस्कर सुधीर कुशवाहा पर एनआइए ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया है. एनआइए कोर्ट पटना ने सुधीर कुशवाहा का प्रोडक्शन वारंट जारी किया है. सुधीर को सात जनवरी, 2023 को एनआइए कोर्ट में प्रोडक्शन पर पेश करना है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 10, 2022 2:58 AM

Muzaffarpur के शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा में बंद जाली नोट तस्कर सुधीर कुशवाहा पर एनआइए ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया है. एनआइए कोर्ट पटना ने सुधीर कुशवाहा का प्रोडक्शन वारंट जारी किया है. सुधीर को सात जनवरी, 2023 को एनआइए कोर्ट में प्रोडक्शन पर पेश करना है. बताया जाता है कि सुधीर कुशवाहा को जाली नोट तस्कर बनाने वाला गाॅड फादर लाल मोहम्मद काठमांडू में हुए मुठभेड़ में मारा जा चुका है. लेकिन, उसके सिंडिकेट से जुड़े प्रमोद कुशवाहा की गिरफ्तारी नहीं हो सकी है.

सात जुलाई को हुआ था गिरफ्तार

पूर्वी चंपारण जिले के आदापुर थाना के हरपुर घोड़ासहान निवासी सुधीर कुशवाहा पर एनआइए ने दो लाख का इनाम रखा था. उसे सात जुलाई, 2022 को स्टेशन रोड से गिरफ्तार किया गया था. उसके पास से एक लाख 51 हजार के जाली नोट मिले थे. वह बंगाल के जाली नोट सप्लायर खुर्शीद को जाली नोट की क्वालिटी दिखाने आया था. जेल भेजे जाने से पहले उनसे पुलिस को बताया था कि काठमांडू में लाल मोहम्मद व प्रमोद कुशवाहा जाली नोट की खेप देता था. उस जाली नोट को भारत के अलग- अलग हिस्सों में खपाता था. इसमें नेपाल के बारा जिला का रूपेश कुशवाहा उसकी मदद करता था. रूपेश का ससुराल पूर्वी चंपारण के अरेराज में है.

सुधीर कुशवाहा ऐसे बना जाली नोट तस्कर

एनआइए समेत कई राष्ट्रीय जांच एजेंसी का मोस्ट वांटेड था. उसने नगर थाने पुलिस को दिये स्वीकारोक्ति बयान में बताया था कि वह 10 वीं पास है. आइकॉन में एडमिशन लेकर पढ़ाई छोड़ दिया था. पहली से छठी तक उसकी पढ़ाई शहीद भगत कन्या पीताम्बर उच्च विद्यालय आदापुर पूर्वी चंपारण से हुई. उसके आगे की पढ़ाई नेपाल के बारा जिला के उच्च माध्यमिक विद्यालय से हुई. 1999 से 2000 में वह दिल्ली चला गया. वहां तुगलकाबाद में एक कपड़ा फैक्टरी में काम किया. फिर, वह वापस नेपाल लौट आया.

स्टील फैक्ट्री में सुपरवाइजर बन गया सुधीर

2001 में नेपाल चला आया और जीतपुर में एक स्टील फैक्ट्री में सुपरवाइजर बन गया. वहां छह साल तक काम किया. लेकिन, कुछ नहीं हुआ. अधिक पैसा कमाने की लालच में नकली भारतीय रुपया तस्करी गिरोह से जुड़ गया. इस दौरान उनकी दोस्ती नेपाल के सिम्रौनगढ़ के रुपेश कुशवाहा से हुई. रूपेश का ससुराल पूर्वी चंपारण के अरेराज में था. उसने ही उसकी पहचान अरेराज के गामा राम से कराई. फिर गामा राम को नकली नोट सप्लाई करने के लिए उसने नेपाल के बीरगंज के आफताब से दोस्ती हुई. उसी के साथ मिलकर नकली नोट का तस्करी करने लगा. 2008 में नकली नोट के साथ वह अपने ग्रुप के साथ पकड़ा गया. उसके गांव से बीचों- बीच से भारत नेपाल की सीमा गुजरती है. इसी का फायदा उठाकर उसने अपनी जमानत करवा ली. इस बीच आफताब 2012- 13 में मारा गया. इसके बाद वह नेपाल में कोयला का कारोबार करने लगा. इसमें घाटा हुआ तो ईंट- भट्ठा चलाया. यहां, भी घाटा लगा तो फिर से वह नकली नोट के धंधे में जुड़ गया. काठमांडू के लाल मोहम्मद व प्रमोद कुशवाहा समेत अन्य उसको नकली भारतीय नोट देता था. उसका वह बॉर्डर पार करके इंडिया में सप्लाई करता था.

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