मुजफ्फरपुर में हम दो हमारे दो का नारा अब दंपतियों को मुखिया जी बतायेंगे. इतना ही नहीं मुखिया जी अब नव दंपतियों को यह भी बतायेंगे कि उन्हें कितने साल के अंतराल में दूसरे बच्चों को जन्म देना हैं. स्वास्थ्य विभाग ने यह नई पहल की हैं. परिवार नियोजन के कार्य में अब मुखिया जी और पंचायत प्रतिनिधियों को शामिल किया गया हैं. वहीं राष्ट्रीय स्वाथ्य मिशन के कार्यो की भी निगरानी रखनी हैं. पहले चरण में 15 जिला मुजफ्फरपुर, पटना, दरभंगा, वैशाली, मुधबनी, शेखपुरा, रोहतास, बांका, गया, पूर्णिया, भागलपुर, कटिहार, मुंगेर, सारण, पूर्वी चंपारण को शामिल किया गया हैं.
कार्यपालक निर्देशक सह विशेष सचिव संजय कुमार सिंह ने इन जिलों के सिविल सर्जन को निर्देश दिया है कि वह अपने अपने जिलों के मुखिया को कार्यशाला में आने के लिये प्रेरित करे. कार्यशाला पटना में 10 नवबंर को आयोजित की जानी हैं. इसमें इन्हें ट्रेनिंग देकर मास्टर ट्रेनर बनाया जायेगा कि कैसे वह दंपतियों को बतायेंगे कि बच्चों के जन्म में कितने साल का अंतराल रखे. मुखिया जी को ट्रेनिंग में जानकारी दी जायेगी कि स्वास्थ्य विभाग की ओर से बंध्याकरण के अलावा बच्चों के अंतराल रखने के लिये क्या क्या करनी चाहिए. कितने साल के बा पहले व दूसरे बच्चों को जन्म देना हैं.
18 महीने से 23 महीने के बीच का गैप होना जरूरी
मुखिया जी बताएंगे कि 2 प्रेग्नेंसी के बीच 18 से 23 महीने यानी डेढ़ से 2 साल के बीच का गैप होना बेहद जरूरी है. प्रेग्नेंसी और डिलिवरी के बाद महिला के शरीर को फिर से रिकवर होकर अपनी एनर्जी वापस पाने में इतना समय तो लग ही जाता है. इतना ही नहीं 2 बच्चों के बीच अंतर रखना इसलिए भी जरूरी है ताकि आप दोनों बच्चों को पूरी तरह से और बराबर ध्यान और तवज्जो दे पाएं. अगर 2 बच्चों के बीच उम्र का अंतर ज्यादा होगा तो आप दोनों बच्चे के शुरुआती सालों में उन पर पूरा ध्यान दे पाएंगे और साथ ही बच्चों पर होने वाले खर्च को भी अच्छी तरह से मैनेज कर पाएंगे.
6 महीने के अंदर दोबारा प्रेग्नेंट होने पर कई तरह का खतरा
जिले के मुखिया को समझाना होगा कि स्वास्थ्य के लिहाज से देखें तो जब तक कोई महिला एक प्रेग्नेंसी और डिलिवरी से पूरी तरह से उबर नहीं जाती उसे दूसरे बच्चे के बारे में बिलकुल नहीं सोचना चाहिए. खासकर तब जब आपके शरीर में आयरन या हीमॉग्लोबिन की कमी हो. अगर पहली डिलिवरी के 6 महीने के अंदर महिला दूसरी बार प्रेग्नेंट हो जाती है तो ऐसे बच्चे में जन्म के वक्त वजन कम होना, प्रीमच्योर डिलिवरी का खतरा जैसी आशंकाएं बढ़ जाती हैं.
रिपोर्ट: कुमार दीपू