कार्रवाई: मामला सकरा प्रखंड की रूपनपट्टी पंचायत का, 5200 पौधे गायब होने में नपे तत्कालीन जेइ व पीआरएस

मुजफ्फरपुर: सकरा प्रखंड की रूपनपट्टी पंचायत में मनरेगा योजना के तहत पौधे लगाने में अनियमितता के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई शुरू हो गयी है. डीडीसी सह अपर जिला कार्यक्रम समन्वयक मनरेगा अरविंद कुमार वर्मा ने सकरा के तत्कालीन कनीय अभियंता कार्यरत दीपक कुमार चौधरी व रूपनट्टी पंचायत के तत्कालीन रोजगार सेवक दिनेश कुमार सिन्हा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 7, 2017 9:06 AM
मुजफ्फरपुर: सकरा प्रखंड की रूपनपट्टी पंचायत में मनरेगा योजना के तहत पौधे लगाने में अनियमितता के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई शुरू हो गयी है. डीडीसी सह अपर जिला कार्यक्रम समन्वयक मनरेगा अरविंद कुमार वर्मा ने सकरा के तत्कालीन कनीय अभियंता कार्यरत दीपक कुमार चौधरी व रूपनट्टी पंचायत के तत्कालीन रोजगार सेवक दिनेश कुमार सिन्हा का नियोजन रद्द कर दिया है.

जेइ फिलहाल मोतीपुर प्रखंड में और पंचायत रोजगार सेवक सकरा की ही विशुनपुर बघनगरी पंचायत में कार्यरत थे. इसी मामले में सकरा प्रखंड के तत्कालीन प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी आसिफ इकबाल से स्पष्टीकरण पूछा गया है.

वित्तीय वर्ष 2011-12 में मनरेगा योजना के तहत पौधा लगाने के लिए कुल दस योजनाएं ली गयीं. सरकारी दस्तावेजों के अनुसार, दो योजनाओं में कुल 5200 पौधे लगाये गये. लेकिन, प्रशासन को शिकायत मिली कि पौधरोपण में बड़े पैमाने पर अनियमितता हुई है. डीडीसी ने मामले की जांच की जिम्मेदारी डीआरडीए की सहायक परियोजना पदाधिकारी रेणु सिन्हा को दी. जांच के क्रम में पाया गया कि कार्यस्थल पर मिट्टी के टीले तो बने हैं, लेकिन उस पर एक भी पौधा नहीं लगा है. यदि पौधे लगाये गये थे, तो उनका क्या हुआ, अधिकारी इसका भी कोई जवाब नहीं दे पाये.
जेइ का तर्क, फर्जी हस्ताक्षर से निकाल ली राशि
जांच रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन जेइ व पंचायत रोजगार सेवक से स्पष्टीकरण पूछा गया, लेकिन वे संतोषजनक जवाब नहीं दे सके. जेइ दीपक कुमार चौधरी का तर्क था कि उन्हें पौधरोपण योजना की जानकारी नहीं थी. 12 योजनाओं व मापीपुस्त पर उनका फर्जी हस्ताक्षर कर राशि निकाल ली गयी है. वहीं, पंचायत रोजगार सेवक का तर्क था कि मठ की जमीन पर पौधरोपण का काम हुआ था. डॉ महंथ श्यामसुंदर दास ने लगाये गये पौधों की सुरक्षा के लिए घेराबंदी का आश्वासन दिया, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. इसके कारण नील गाय सहित अन्य जानवरों ने उन्हें नष्ट कर दिया. 15 जुलाई, 2013 को पंचायत कार्यकारिणी से प्रस्ताव पारित कर योजना बंद कर दी गयी है. हालांकि, दोनों पदाधिकारी अपने तर्क के संबंध में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाये.

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