इबादत: कुरान शरीफ की तिलावत से रोजेदारों को दी जा रही शिक्षा, रमजान की तरह गुजारें पूरा साल
मुजफ्फरपुर: रमजान में लोग अल्लाह से यही दुआ कर रहे हैं कि पवित्र माह की तरह वे पूरे वर्ष सच्चाई व ईमानदारी से गुजारेंगे. किसी को कष्ट नहीं देंगे. लोगों की मदद करेेंगे. अल्लाह के बनाये गये नियमों के अनुसार जीवन जीयेंगे. मसजिद से लेकर घरों में लोग अल्लाह की इबादत में खुद को ईमानदारी […]
मुजफ्फरपुर: रमजान में लोग अल्लाह से यही दुआ कर रहे हैं कि पवित्र माह की तरह वे पूरे वर्ष सच्चाई व ईमानदारी से गुजारेंगे. किसी को कष्ट नहीं देंगे. लोगों की मदद करेेंगे. अल्लाह के बनाये गये नियमों के अनुसार जीवन जीयेंगे. मसजिद से लेकर घरों में लोग अल्लाह की इबादत में खुद को ईमानदारी से जीने के लिए दुआ कर रहे हैं. कुरान शरीफ की तिलावत में भी रोजेदारों को यही शिक्षा दी जा रही है कि वे अल्लाह के बनाये गये नियमों के अनुसार एक महीना नहीं, बल्कि पूरा साल गुजारें. लोग अपनी आदतों को सिर्फ एक महीने के लिए नहीं सुधारें, बल्कि पूरा वर्ष भर ऐसे ही अपना जीवन बिताएं. मो इश्तेहाक कहते हैं कि रमजान वर्ष भर हमें ऐसे ही रहने की सीख देता है.
ईश्वर हम सबके साथ इंसाफ की तौसीफ दे
अल्लाह ने ब्रह्मांड में हर प्रकार की चीज दी है. कुरान में उन चीजों को अपनी आयत (निशानी) कहा गया है. कहा गया है कि इस पर गौर करो. हमें पहचान सको और पहचानने के बाद अल्लाह का अहसास करो, ताकि अहसास के पैदा होने से दिल में डर बने. बहुत सी दुनिया की बुराइयां इसलिए होती हैं और बहुत सारी बुराइयों पर हम चुप इसलिए रहते हैं कि क्योंकि हम दूसरों को बड़ा मानते हैं और उससे डरते हैं. जहां अल्लाह की बुजुर्गी का अहसास हो जायेगा, तो हम जुल्म के मुकाबले खड़े हो जायेंगे.
सैयद मो काजिम शबीब, इमाम, शिया जामा मसजिद, कमरा मुहल्ला
रोजा का असल मकसद सादगी व गरीबों की मदद
रमजान की पांच मशहूर रातों में 27वीं की शब तलाशे शब कद्र में सबसे ज्यादा मशहूर है. शबे कद्र में अल्लाह के हुक्म से हजरत जिबरइल सिदरा पर रहनेवाले सात हजार फरिश्तों के साथ नूरी झंडा हाथों में लिये जमीन पर उतर कर झंडों को चार जगह गाड़ते हैं. उन स्थानों में खाना काबा, गुंबद खजरा, बैतुल मोकद्दस और मसजिद तुरे सीना के निकट के स्थान सम्मिलित हैं. झंडे गाड़ कर फरिश्ते सारी जमीन पर फैल जाते हैं और मोेमिन मर्द या औरत जहां भी मौजूद रहते हैं, वहां ये फरिश्ते तसबीह, तकदीस और तहलिल में मसरूफ हो जाते हैं और तमाम रातें उम्मते महमदिया की मगफिरत के लिए दुआएं करते हैं.
मौलाना जिया अहमद कादरी, मर्कजी खानकाह आबादानिया व एदारा–ए–तेगिया, माड़ीपुर