बाढ़ का कहर: आफत के सैलाब से जिंदगी की जद्दोजहद
मुजफ्फरपुर: रजवाड़ा बांध टूटने के चार दिनों बाद आफत का सैलाब अब लोगों को दर्द देने लगा है. बाढ़ के पानी ने पहले खेतों को लील लिया. राह में आये हजारों मकान जल प्रवाह में खो गये. गांव के गांव टापू बन गये व हजारों लोग दरिया के सैलाब में कैद हो गये. अपने जज्बे […]
मुजफ्फरपुर: रजवाड़ा बांध टूटने के चार दिनों बाद आफत का सैलाब अब लोगों को दर्द देने लगा है. बाढ़ के पानी ने पहले खेतों को लील लिया. राह में आये हजारों मकान जल प्रवाह में खो गये. गांव के गांव टापू बन गये व हजारों लोग दरिया के सैलाब में कैद हो गये. अपने जज्बे के दम पर इस सैलाब से जद्दोजहद कर लोग इससे उबरने में जुटे हुए हैं. लेकिन हालात अगर दो से तीन दिनों में सही नहीं हुए, तो उनका हौसला भी बाढ़ के पानी की तरह बह जायेगा. लोगों को न तो पीने का पानी मिल पा रहा है और न ही खाने का इंतजाम. तिरहुत नहर के तटबंध पर बसे हजारों बाढ़ पीड़ितों की कहानी कुछ ऐसी ही है. सरकारी सिस्टम की नाकामी को लेकर लोगों में गुस्सा है.
बिंदा गांव के रहने वाले जयगोविंद राम मंगलवार की रात 11 बजे तिरहुत नहर के तटबंध पर अपने नौ सदस्यीय परिवार के साथ जान जोखिम में डालकर आये हैं. बताया कि पूरा गांव बाढ़ के पानी से डूब गया है. बांध टूटने के बाद लोगों को जहां रहने के लिए जगह मिला, वहीं पर अपना डेरा डाले हुए हैं. लगता था कि एक-दो दिन में स्थिति ठीक हो जायेगी. लेकिन चार दिन हो गये. पानी की धारा और तेज हो गयी है. मजबूरन घर की जमा पूंजी छोड़कर तिरहुत नहर पर डेरा डालना पड़ा. सरकारी इंतजाम के सवाल पर चिढ़ जाते है. बताते हैं कि जब से हम यहां आये हैं, तब से बांध पर कोई भी झांकने तक नहीं आया.तिरहुत बांध पर ही जयकिशोर भी अपना तंबू गाड़े हैं. बताते हैं कि बांध टूटने के अगले दिन परिवार के आठ सदस्यों के साथ आया था. तीन दिन हो गये, लेकिन अबतक खुद ही चूल्हा जलाने का इंतजाम करना पड़ा है. परिवार बड़ा है. ऐसे में महज एक से दिन ही अनाज चल पायेगा. यह कहानी केवल जयगोविंद व जय किशोर की नहीं है. ऐसे सैकड़ों परिवार तिरहुत नहर के तटबंध पर सरकारी सिस्टम की नाकामी को बताने के लिए एक साथ खड़े हो जाते हैं.
दो दिन में एक बार मिली है खिचड़ी
बैदौलिया गांव के करीब 30-35 परिवार नरसिंहपुर चौक पर अपना डेरा जमाए हुए हैं. गांव का स्कूल डूबने के बाद एनडीआरएफ की टीम ने इन्हें निकाला. गांव के देवेंद्र सहनी बताते हैं कि चार सदस्यीय परिवार है. गांव में फूस की झोपड़ी थी, जो पानी के सैलाब के साथ बह गयी. घर में रखा अनाज तक पानी में बह गया. खाने के लिए कुछ भी नहीं है. दो दिन बाद मंगलवार की रात सरकारी खिचड़ी मिली थी. उसी गांव के राम नाथ सहनी बताते हैं कि सरकार सहायता दो दिन में एक बार मिली है. इसके बाद से अधिकारियों की गाड़ी यहां से कई बार गुजरी, लेकिन कुछ मिला नहीं. बच्चे भूखे हैं. लेकिन खाने को कुछ नहीं है. सामने चौराहा तो है. लेकिन खरीदने के लिए रुपये नहीं है.
तोड़ दिये गाड़ियों के शीशे
बाढ़ पीड़ितों में सरकारी सिस्टम के प्रति इतनी नाराजगी है कि उनके गुस्से का शिकार आम आदमी को होना पड़ रहा है. बाढ़ राहत के नाम पर माकूल व्यवस्था न होने से बुधवार को मुशहरी ब्लॉक के समीप लोगों ने स्टेट हाइवे को करीब आधे घंटे तक जाम कर दिया. द्वारिका नगर मध्य विद्यालय के करीब 200 मीटर पहले युवाओं की टोली राहगीरों पर टूट पड़ी. सड़क पर घुटने भर पानी में युवकों ने हाथ में लाठी लिये चारपहिया वाहनों को राेकने में लगे. कई चारपहिया वाहनों के शीशे युवकों ने तोड़ दिया. इसके कारण एसडीओ पूर्वी व डीएसपी पूर्वी को गाड़ी मोड़ना पड़ा.