BIHAR : शराबबंदी : शराब छूटी, तो गुलजार हुआ कामेश्वर का आंगन
पहले नशे के कारण परिवार व पड़ोसी रहते थे परेशान, बेटे-बहू भी नहीं देते थे सम्मान मुजफ्फरपुर : फूस के बने घर के आंगन में लूंगी व बनियान पहन कर बैठे 70 वर्षीय कामेश्वर के चेहरे पर खुशी है. जमीन पर पोते-पोतियां खेल रहे थे. वह भी उनके साथ उलझे हुए थे. बताया कि अभी […]
पहले नशे के कारण परिवार व पड़ोसी रहते थे परेशान, बेटे-बहू भी नहीं देते थे सम्मान
मुजफ्फरपुर : फूस के बने घर के आंगन में लूंगी व बनियान पहन कर बैठे 70 वर्षीय कामेश्वर के चेहरे पर खुशी है. जमीन पर पोते-पोतियां खेल रहे थे. वह भी उनके साथ उलझे हुए थे. बताया कि अभी कुछ देर पहले ही रिक्शा चला कर लौटा हूं. पानी पीकर बच्चों के साथ बैठ गये. इतने में झोंपड़ीनुमा घर से मुस्कुराते हुए बड़ी बहू बबीता निकली.
प्रदेश शराबबंदी के बाद से कामेश्वर मंडल की दुनिया ही बदल गयी है. पहले हर वक्त नशे में रहने वाले कामेश्वर की आदतों से पूरा परिवार परेशान रहता था, लेकिन अब बेटे- बहुओं के लिए आदर्श और समाज के लिए नजीर बन गये हैं. न्यू एरिया सिकंदरपुर बांध के रहने वाले कामेश्वर मंडल के साथ दो बेटों का परिवार रहता है, जिसमें दो बहुएं व सात पोते-पोतियां हैं.
कामेश्वर रिक्शा चलाते हैं. बताया कि शराब की लत छोड़ने के बाद काफी अच्छा लगता है. तब परिवार के लोग भी परेशान रहते थे. रोज किसी-न-किसी से गाली-गलौज, झगड़ा हो जाता था. नशे के चलते होली- दीवाली जैसे पर्व के बारे में भी जानकारी नहीं मिलती. बस, पूरे दिन नशे में डोलते रहता था. कभी सड़क पर सो गया, तो कभी रेलवे स्टेशन पर. कई बार तो घर पहुंचने के बाद भी कोई खबर नहीं रहती. बेटे- बहू के साथ ही पड़ोसी भी परेशान रहते थे. स्थिति यह थी मेरी आदतों से तंग आकर दोनों बहूएं बबीता व पूजा मायके चली गयी थीं. बड़ा बेटा श्यामबाबू मंडल बताने लगा, इनकी आदत के चलते तो पहले लोगों ने इस रास्ते से भी गुजरना छोड़ दिया था.
शराबबंदी के बाद नशे की आदत छूटने पर कामेश्वर में बहुत बदलाव आया. दोनों बेटों को भेज कर बहू व पोते-पोतियों को घर बुलवाया. बड़ी बहू बबीता बताने लगी, अब सबका खयाल रखते हैं. कामेश्वर ने आदत बदलने के साथ ही पहले अपने घर को संवारा. पहले आंगन में ही गड्ढा था. दो झोंपड़ियां बनी थीं, लेकिन बाहर से सब खुला हुआ था. कई दिनों तक खुद मेहनत करके कामेश्वर ने आंगन में मिट्टी भर कर बराबर किया.
इसके साथ ही फुस की चहारदीवारी बना दी, जिससे बहुओं को सुरक्षित रख सके. कामेश्वर बताने लगे, अब बहुत अच्छा लगता है. कभी खाली समय नहीं मिलता. काम से छूटने के बाद पोते-पोतियों के साथ अच्छे से समय बीत जाता है. अब कोई खर्च भी नहीं है. यही सपना है कि पोते-पोतियों को पढ़ा-लिखा कर अच्छा आदमी बना दें. पिछले साल अगस्त में ही डीएम ने निजी स्कूलों को दिये थे कई निर्देश, पर अब भी हो रही मनमानी