शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले

बंदरा: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा. राष्ट्र के लिए शहादत देने वाले ऐसे वीर सपूत थे नुनफरा गांव के अमीर सिंह. मात्र 30 वर्ष की आयु में वे 11 सितंबर 1942 को अंग्रेज सैनिक की गोली से शहीद हुए थे. लेकिन शहीद के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 11, 2017 11:54 AM
बंदरा: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा. राष्ट्र के लिए शहादत देने वाले ऐसे वीर सपूत थे नुनफरा गांव के अमीर सिंह. मात्र 30 वर्ष की आयु में वे 11 सितंबर 1942 को अंग्रेज सैनिक की गोली से शहीद हुए थे. लेकिन शहीद के परिजन इस बात से आहत हैं कि वतन पे मरने वाले शहीद अमीर सिंह को उपेक्षित छोड़ दिया गया है. उन्हें बापू स्नेह से बाबू अमीरी सिंह कह कर पुकारते थे.
उनके जाननेवाले बताते हैं कि छात्र जीवन से ही वे क्रांतिकारी थे. फिरंगी सरकार व उसके पैरोकारों के प्रति उनमें नफरत थी. मजदूर आंदोलन का नेतृत्व उन्होंने किया था. इस क्रम में जमींदारो के कहने पर उन्हे सरकार ने हजारीबाग जेल भेज दिया. जेल से छूटने के बाद फिर से वे उसी रास्ते पर चल पड़े.
अमीर सिंह के सहयोगी रहे नूनफारा निवासी 90वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी बैद्यनाथ सिंह की आंखें उन्हें याद कर छलक उठती है. वे बताते हैं कि 11 सितंबर 1942 की घटना उन्हें पूरी तरह याद है. सकरा थाने पर झंडा फहराने के लिए अमीर सिंह पहुंचे. थानेदार दीपनारायण सिंह ने कहा कि गोरखा फौज आ चुकी है, झंडा मत फहराइये. इसके बाद भी अमीर सिंह ने थाने पर झंडा फहरा दिया. इसके बाद रजिस्ट्री ऑफिस की ओर निकल पड़े. रजिस्ट्री गेट के अंदर झंडा फहराने की तैयारी पूरी थी, तभी गोरखा पुलिस आ गयी. फायरिंग में अमीर सिंह शहीद हो गये. गोरखा पुलिस ने मंजेलाल की मूंछे उखाड़ ली. गोरखा पुलिस व आंदोलनकारियों के बीच उठा-पटक भी हुआ.
स्व उदित सिंह के तीन पुत्रों में अमीर सिंह मझले थे. बड़े भाई धनवीर सिंह व छोटे भाई रामवृक्ष सिंह किसान थे. जो अब दिवंगत हो चुके है. शहीद की विधवा जयमाला भी 1943 में हैजे की चपेट में आ कर चल बसी. अमीर बाबू के भतीजे सत्येंद्र सिंह रोते हुए कहते है की सरकारी सुविधा को हमने ठुकरा दिया,लेकिन बाबू अमीर सिंह के स्मृति में ऐसा कुछ होना चाहिए ताकि आनेवाली पीढ़ी को उनके बारे में पता चल सके. सत्येंद्र आज भी सपरिवार उसी झोपड़ी में रहते हैं, जहां जयमाला ने अंतिम सांस ली थी. सत्येंद्र सिंह कहते है की प्रखंड कार्यालय के उदघाट्न के समय प्रखंड मुख्यालय में शहीद अमीर सिंह की प्रतिमा स्थापित करने का आश्वासन मिला था, परंतु यह हकीकत नही बन सका. तत्कालीन कल्याण मंत्री रमई राम ने उनकी याद में एक द्वार बनबाया था. वह भी ध्वस्त होने के कगार पर है.

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