पौने दो करोड़ में जमीन नहीं देगी इंदु कहा- मार्केट वैल्यू से आधी है राशि

मुजफ्फरपुर: चंपारण सत्याग्रह के दौरान शहर आये गांधी जी वर्ष 2017 में रमना के जिस मकान में ठहरे थे, उसके अधिग्रहण में पेच फंस गया है. स्वर्गीय गया बाबू के भाई यदुनाथ सिंह के पौत्र इंदु शेखर सिंह ने 11 डिसमिल जमीन की कीमत करीब पौने दो करोड़ लगाये जाने के कयास पर आपत्ति जतायी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 6, 2017 8:57 AM
मुजफ्फरपुर: चंपारण सत्याग्रह के दौरान शहर आये गांधी जी वर्ष 2017 में रमना के जिस मकान में ठहरे थे, उसके अधिग्रहण में पेच फंस गया है. स्वर्गीय गया बाबू के भाई यदुनाथ सिंह के पौत्र इंदु शेखर सिंह ने 11 डिसमिल जमीन की कीमत करीब पौने दो करोड़ लगाये जाने के कयास पर आपत्ति जतायी है. उनका कहना है कि यह कीमत जमीन की मार्केट वैल्यू की करीब आधा है. ऐसे में इसे स्वीकार करना मुश्किल है. उन्होंने कहा कि वे इसी सप्ताह इस मामले में डीएम धर्मेंद्र सिंह से मिलेंगे व अपनी आधिकारिक आपत्ति दर्ज करायेंगे.
10 अप्रैल, 1917 की रात शहर आनेवाले महात्मा गांधी अगले दिन बुद्धिजीवियों की सलाह पर रमना स्थित गया बाबू के मकान में रहने चले आये. वे चार दिनों तक यहां रहें. वास्तव में यह घर गया बाबू के भाई यदुनाथ सिंह को एलॉट किया गया था, जिसमें गया बाबू रहते थे. पिछले दिनों चंपारण सत्याग्रह स्मृति समारोह के दौरान यहां कार्यक्रम का भी आयोजन हुआ था.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर उस भवन को ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संजोने की तैयारी चल रही है. खुद इंदु भूषण सिंह ने लोक संवाद कार्यक्रम में दौरान मुख्यमंत्री से मिल कर यह इच्छा जतायी थी. कला, संस्कृति एवं युवा विभाग ने 11 डिसमिल में फैले गया बाबू के मूल मकान के बचे हिस्से को ही अधिग्रहण करने का फैसला लिया है.

एमवीआर की दोगुनी मिलेगी राशि
बिहार भू-अर्जन नीति-2013 के अनुसार, जमीन का अधिग्रहण होने पर भू-स्वामी को उसके एमवीआर के आधार पर मुआवजा मिलता है. यदि जमीन ग्रामीण क्षेत्र में है, तो मुआवजा की राशि एमवीआर की चार गुनी होती है. वहीं, शहरी क्षेत्र की जमीन के लिए एमवीआर का दोगुना मुआवजा मिलता है. भू-अर्जन की सहमति देने वाले इंदु शेखर सिंह का कहना है कि उन्होंने मुख्यमंत्री व निरीक्षण करने आयी टीम के समक्ष ‘उचित मूल्य’ मिलने पर जमीन देने की बात कही थी. ऐतिहासिक धरोहर को इतने लंबे समय तक संजोने के एवज में प्रशासन की ओर से तय राशि बेहद कम है.

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