सुनने की क्षमता छीन रहा प्रदूषण सरकारी स्तर पर नहीं हो रही रोकथाम

मुजफ्फरपुर : शहर के लिए ध्वनि प्रदूषण साइलेंट किलर साबित हो रहा है. लगातार तेज ध्वनि में रहने के कारण हर महीने दर्जनों लोगों की सुनने की क्षमता कम हो रही है, लेकिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उदासीन है. शहर में ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम व जागरूकता के लिए होर्डिंग बैनर भी नहीं लगाये गये हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 12, 2017 5:30 AM

मुजफ्फरपुर : शहर के लिए ध्वनि प्रदूषण साइलेंट किलर साबित हो रहा है. लगातार तेज ध्वनि में रहने के कारण हर महीने दर्जनों लोगों की सुनने की क्षमता कम हो रही है, लेकिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उदासीन है. शहर में ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम व जागरूकता के लिए होर्डिंग बैनर भी नहीं लगाये गये हैं. बाइक में प्रेशर हॉर्न जैसे तेज आवाज वाले हॉर्न पर रोक नहीं है.

गाड़ियों की जांच में ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम की अनदेखी की जा रही है. शहर में साउंड सिस्टम के प्रयोग पर भी कोई नियंत्रण नहीं है. किस क्षेत्र में कितने डेसिबल तक आवाज में साउंड प्रसारित हो, इसके लिए भी मानक नहीं बनाये गये हैं.

40 डिसिबल से ज्यादा आवाज नुकसानदेह. भारतीय मानक संस्थान की ओर से ध्वनि प्रदूषण का लेबल 40 डेसिबल से अधिक नुकसानदेह माना गया है, जबकि शहर में दिन के समय यह 80 से 90 तक रहता है. इसका प्रमुख कारण ट्रैफिक, जाम व गाड़ियों की तेज आवाज है. ऑडियोलॉजिस्ट की मानें, तो जाम लगते ही ध्वनि प्रदूषण दोगुना बढ़ जाता है.
एक ही जगह पर लगातार गाड़ियों की आवाज व हॉर्न प्रदूषण लेबल को बढ़ा देती है. काफी देर तक ऐसे माहौल में रहने के कारण लोगों की सुनने की शक्ति प्रभावित होने लगती है. ऑडियोलॉजिस्ट डॉ श्रीप्रकाश कहते हैं कि शहर की आबादी के दस फीसदी लोग कम सुनते हैं. यह बात भले ही हैरान करनेवाली हो, लेकिन सच यही है. अधिकतर लोग इसे बीमारी नहीं मानते. बातचीत के दौरान किसी की बात ठीक से नहीं सुनायी पड़ने पर वह दोबारा पूछते हैं, लेकिन इसे श्रवण दोष नहीं मानते.
ऑडियोलॉजिस्ट के पास तभी जाते हैं, जब उन्हें लगता है कि बिना डॉक्टर को दिखाये काम नहीं चल सकता. शहरी क्षेत्रों में पिछले दो वर्षों में मरीजों की संख्या तीन-चार गुना बढ़ गयी है. टेस्ट कराने वाले अधिकतर लोगों में कम सुनायी पड़ने की बात देखी जा सकती है.
सरकारी स्तर पर व्यवस्था नहीं. स्वास्थ्य विभाग की ओर से कम सुनने वाले लोगों की जांच की व्यवस्था नहीं है. कुछ वर्षों पूर्व
एसकेएमसीएच में जांच के लिए ऑडियोलॉजिस्ट की नियुक्ति की गयी थी, लेकिन वह पद खाली है. इस कारण यहां लोगों की जांच नही होती. सदर अस्पताल में जांच के लिए उपकरण व विशेषज्ञ नहीं हैं. कम सुनने वाले लोगों के लिए श्रवण यंत्र भी सरकारी तौर पर नहीं दी जाती. इसकी कीमत दस से 12 हजार रुपये होने के कारण आर्थिक रूप से कमजोर लोग इसे नहीं खरीद पाते.
ध्वनि प्रदूषण से खोयी सुनने की ताकत
ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों के सुनने की क्षमता कम हो रही है, जिन व्यक्तियों में शोर की संवेदनशीलता अधिक होती है, वे जल्दी प्रभावित होते हैं. लखनऊ के एक शोध के अनुसार जिन लोगाें ने पांच वर्षों तक 10 घंटे शोर में गुजारे, उनमें 55 फीसदी लोगाें की सुनने की शक्ति कम हो गयी. इसके अलावा चिड़चिड़ापन की समस्या भी देखी गयी.
अधिक देर तक ध्वनि प्रदूषण में रहने से न्यूरोटिक
मेंटल डिसऑर्डर की समस्या भी आ रही है. इससे मांसपेशियों में खिंचाव हो जाता है.
गाड़ियों की नहीं होती जांच
प्रेशर हॉर्न पर नहीं लगायी जाती रोक, प्रदूषण विभाग उदासीन
साउंड सिस्टम पर आवाज के लिए डेसिबल का निर्धारण नहीं
स्रोत ध्वनि-स्तर (डेसिबल)
श्वसन 10
पत्तियों की सरसराहट 10
फुसफुसाहट 20-30
पुस्तकालय की आवाज 40
शांत भोजनालय 50
सामान्य वार्तालाप 55-60
तेज वर्षा 55-60
घरेलू बहस 55-60
स्वचालित वाहन 90
बस 85-90
रेलगाड़ी की सीटी 110
तेज म्यूजिक 100-115
सायरन 150
ध्वनि विस्तारक 250
व्यावसायिक वायुयान 120-140
राकेट इंजन 180 – 195

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