वृद्ध के इलाज के लिये दर-दर भटक रहे बेटा-बहू, गांव से भगाने पर तूले ग्रामीण

मुजफ्फरपुर : एक तरफ समाज में जहां एक वक्त के बाद बूढ़े मां-बाप को बोझ समझ कर वृद्धाश्रमों में छोड़ दिया जाता है या फिर सबकुछ रहते हुए भी उन्हें घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है. वहीं, समाज में आज भी कुछ ऐसे बच्चे हैं जिनके लिए अपने मां-बाप से बढ़कर कुछ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 17, 2018 11:58 AM

मुजफ्फरपुर : एक तरफ समाज में जहां एक वक्त के बाद बूढ़े मां-बाप को बोझ समझ कर वृद्धाश्रमों में छोड़ दिया जाता है या फिर सबकुछ रहते हुए भी उन्हें घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है. वहीं, समाज में आज भी कुछ ऐसे बच्चे हैं जिनके लिए अपने मां-बाप से बढ़कर कुछ नहीं है. वृद्ध बाप के सहारे के लिए वे अपना नौकरी-चाकरी छोड़ उनकी देख-भाल के लिए जिंदगी निछावर करने को तैयार हैं.

कुछ ऐसा ही बिहार के मुजफ्फरपुर में देखने को मिला है. जहां बेटा-बहू अपने वृद्ध बाप के इलाज के लिए नौकरी छोड़, इलाज के लिए दर-दर भटक रहा है. वह निरंतर इसी प्रयास में है की उसके पिता जल्द स्वस्थ हो जाये. सुकुन की बात ये है कि इस काम में वृद्ध की बहू भी पूरा सहयोग कर रही है. एक दैनिक समाचार पत्र की माने तो सीतामढ़ी के मेजरगंज थाना के हापुरकला गांव में एक बेटे-बहू ऐसे भी हैं जो मानसिक रूप से बीमार पिता को बेड़ियों से आजाद कराने के लिए दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं. तंगहाली के बावजूद इलाज से पहले ही हजारों रुपये खर्च कर चुके हैं. हालांकि, अंत में कठिन प्रक्रिया से उन्हें निराशा ही हाथ लगी.

दूसरी ओर, हापुरकला गांव निवासी मानसिक रोगी सतनजीव झा को ग्रामीणों ने लोहे की बेरियों में जकड़ दिया है. उनके परिवार को धमकी दी है कि उन्हें रांची पागलखाने भेज दे या फिर इसे लेकर गांव से निकल जाये. ग्रामीणों का फरमान सुनकर बेटा विजय झा दिल्ली से आनन-फानन में शुक्रवार को गांव पहुंचा. उसके अगले दिन शनिवार की सुबह पिता का इलाज कराने के लिए बेटे-बहू गांव से चले. सीतामढ़ी में परेशानी देख एक पुलिस वाले के सहयोग से मुजफ्फरपुर लेकर आये. सदर अस्पताल में इलाज के लिए काफी देर बैठने के बाद डॉक्टर ने एसकेएमसीएच रेफर कर दिया. एसकेएमसीएच में पर्ची कटवाने के बाद भी इलाज किए बिना डॉक्टर ने वापस जाने की बात कह दी. काफी आरजू-मिन्नत के बाद भी जब इलाज नहीं हुआ तो थक-हारकर शाम में बेटे-बहू उन्हें गांव वापस ले गये.

विजय झा ने बताया कि वह दिल्ली में रहकर निजी कंपनी में काम करता है. दादा जीवित थे तो वे पिता सतनजीव झा को संभालते थे. लेकिन, दादा की मौत के बाद से पिता ज्यादा ही विचलित रहने लगे. बहू ने बताया कि बीते दिनों से वे कुछ ज्यादा ही बेकाबू हो गये हैं. घर के आसपास तोड़फोड़ व छत पर चढ़कर ईंट-पत्थर बरसाते थे. इससे ग्रामीण परेशान थे. उन्हें कई बार जंजीर व रस्सी से बांध कर रखा गया, लेकिन वह उसे तोड़ देते थे.

बहू ने बताया कि बीमार सतनजीव झा से बातचीत करने पर वह फर्राटेदार हिंदी व अंग्रेजी में बात करते है. वह अपना नाम, पिता व घर का पूरा पता भी बता देते हैं. अपनी बीमारी के बारे में भी बात करते हैं. मगर, जब वे आक्रोशित होते हैं तभी सब भूल जाते हैं. फिर सामान्य होने पर ठीक से बात करने लगते हैं. बहू ने मुताबिक गांव वालों ने कहा था कि या तो इनको रांची भेज दो नहीं तो गांव छोड़ दो. इसलिए इलाज कराने लाये हैं.

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