साहित्य धरोहर, नयी पीढ़ी के लिए संरक्षण जरूरी
कविता कोश व आंच वेब साहित्यिक पत्रिका ने किया संवाद कार्यक्रम मुजफ्फरपुर : साहित्य हमारी धरोहर है, जो लिखा जा रहा है, उसे नयी पीढ़ी के लिए संरक्षित करने की जरूरत है. जिससे वे समय, परिवेश व संवेदना को समझ सके. यह काम कविता कोश कर रहा है. पिछले 12 वर्षों के अथक प्रयास के […]
कविता कोश व आंच वेब साहित्यिक पत्रिका ने किया संवाद कार्यक्रम
मुजफ्फरपुर : साहित्य हमारी धरोहर है, जो लिखा जा रहा है, उसे नयी पीढ़ी के लिए संरक्षित करने की जरूरत है. जिससे वे समय, परिवेश व संवेदना को समझ सके. यह काम कविता कोश कर रहा है. पिछले 12 वर्षों के अथक प्रयास के बल पर हमने साहित्य के विशाल संग्रह को संरक्षित किया है. क्षेत्रीय भाषा में लिखे साहित्य भी इसमें समाहित किये जा रहे हैं. ये बातें संयोजक राहुल शिवाय ने शुक्रवार को चैंबर ऑफ कॉमर्स में कविता कोश व आंच वेब साहित्यिक पत्रिका की ओर से आयोजित संवाद, सम्मान व कवि सम्मेलन के मौके पर कहीं. इससे पूर्व दीप जला कर कार्यक्रम की शुरुआत की गयी. उद्घाटन संबोधन डॉ संजय पंकज ने किया. सबसे पहले आंच पत्रिका की ओर से राहुल शिवाय, डॉ संजय पंकज, शारदा सुमन व कैलाश झा किंकर को शॉल व मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया.
संवाद के क्रम में शारदा सुमन ने कहा कि कविता कोश में गीतो के वीडियो का अलग सेक्शन बनाया गया है. आप हमें गीत दें, हम उन्हें लय देकर संरक्षित करेंगे. आंच की संपादक डॉ भावना ने कहा कि वेब साहित्यिक पत्रिका के माध्यम से देश-दुनिया में साहित्य के प्रचार-प्रसार में लगे हैं. समसामयिक साहित्य के अलावा हम अपनी साहित्यिक धरोहर को भी संरक्षित कर रहे हैं. अध्यक्षता डॉ अंजना वर्मा व संचालन महफूज अहमद आरिफ ने किया.
शब्दों की संवेदना ने किया संवाद :
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस मौके पर कवियों ने गीत, गजल व कविताओं से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया. डॉ पूनम सिंह ने मां की सीख थी दुख में कभी घुटनों के बल नहीं गिरना व राहुल शिवाय ने थक गया ढूंढ़ कर मंदिर में मस्जिद में जिसे, मां को छूते ही लगा उसको मैंने छू लिया रचनाओं से संवाद किया. डॉ भावना की गजल बिना बोले ही कह जाते बहुत हैं, ये आंसू लफ्ज से अच्छे बहुत हैं भी काफी सराही गयी. कैलाश झा किंकर ने अजीत बात है रहबर नजर नहीं आता, मुसीबतों में वह अक्सर नजर नहीं आता सुना कर लोगों की सराहना ली.
महफूज अहमद आरिफ ने मैं मुसाफिर था चलता रहा,ऐसी आरिफ घटा दे गया सुनाकर लोगों को मुग्ध कर दिया. डॉ संजय पंकज ने सात रंग से सजी अल्पना सजी कल्पना द्वार पर, हल्दी लगी हथेली अम्मा छाप गयी द्वार पर सुना कर खूब तालियां बटोरी. एम अालम सिद्दिकी की गजल जालिम के खौफ से न बदलना कभी मेरा मिजाज, जो भी बुरा है, उसको बुरा कह लिया करो भी काफी सराही गयी.
डॉ आरती ने वादियों का जब नजारा हो गया, फिर तुम्हारी याद का रोशन सितारा हो गया सुना कर मुग्ध किया. इस मौके पर डॉ अनीता सिंह, डॉ सिबगतुल्लाह हमीदी,श्रवण कुमार, मनोज कुमार, लता ज्योतिर्मय, नागेंद्र नाथ ओझा, नंद कुमार मिश्र व प्रवीण कुमार मिश्र की रचनाएं भी काफी पसंद की गयी.