अग्रेजों के जमाने की किताबों को दीमकों ने चाटा

अंग्रेजों के जमाने की किताबों को दीमकों ने चाट लिया. यह किताबें हाईस्कूल की लाइब्रेरियों में रखी हुई थीं. इन्हें रखने के लिए सही इंतजाम नहीं है. लाइब्रेरियों में धूल की चादर व मकड़ों की जाले हैं. छात्रों के लिए लाइब्रेरी एक पुराने बंद कमरे से ज्यादा कुछ नहीं. प्रभात खबर ने शहर के तीन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 29, 2018 5:08 AM
अंग्रेजों के जमाने की किताबों को दीमकों ने चाट लिया. यह किताबें हाईस्कूल की लाइब्रेरियों में रखी हुई थीं. इन्हें रखने के लिए सही इंतजाम नहीं है. लाइब्रेरियों में धूल की चादर व मकड़ों की जाले हैं. छात्रों के लिए लाइब्रेरी एक पुराने बंद कमरे से ज्यादा कुछ नहीं. प्रभात खबर ने शहर के तीन बड़े स्कूलों की लाइब्ररियों के हाल की पड़ताल की.
डीएन प्लस टू स्कूल
डीएन प्लस टू स्कूल की स्थापना 1916 में हुई थी. स्कूल की लाइब्रेरी काफी दिनों से बंद है. लाइब्रेरी में धूल और मकड़ी जाल है. कमरा कई दिनों से नहीं खोला गया है. कमरे में सिर्फ दो टेबुल है जिस पर गंदगी भरी हुई है. कुछ पुरानी कुर्सियां बेतरतीब पड़ी हुई हैं. लाइब्रेरी में अंग्रेजी के कई पुराने शब्दकोष हैं जो आलमीरा मेंप पड़े खराब हो रहे हैं. कई को दीमक ने चाट लिया है. स्कूल के प्राचार्य डॉ जीवन उपाध्याय ने बताया कि लाइब्रेरी सभी विषयों की किताबे हैं. लेकिन जिसके पास प्रभार है वह ठीक से देखरेख नहीं करता है. पिछले साल दस हजार रुपए मिले थे लेकिन उससे कौन सी किताबें खरीदी जाएं यह समझ नहीं आया. इसलिए अभी खरीद नहीं हुई है.दशहरा के बाद लाइब्रेरी को व्यवस्थित कर दिया जाएगा.
2482 किताबों को देखने वाला कोई नहीं भेजी जायेंगी पटना
मुजफ्फरपुर : प्रमंडलीय जनसंपर्क विभाग के वाचनालय में रखीं 2482 किताबें अब पटना चली जायेंगी. इसे देखने वाला कोई नहीं है. किताबें पिछले 18 साल से अलमारी में बंद हैं. वाचनालय में वर्ष 2000 के बाद कोई लाइब्रेरियन नहीं है. अब किताबों को पटना भेजने पर विचार किया जा रहा है.वाचनालय वर्ष 1960 में शुरू हुआ था.
यहां हिन्दी और अंंग्रेजी साहित्य की किताबें मौजूद रहती थीं. वाचनालय में कर्मचारी के नाम पर सिर्फ एक महिला चपरासी है. जनसंपर्क उप निदेशक विदु विभूष प्रसाद ने कहा कि 18 सालों से यहां कर्मचारी नहीं है. इसलिए इसे चलाने में दिक्कत हो रही है.
चैपमैन गर्ल्स स्कूल
लड़कियों के इस बड़े स्कूल में भी लाइब्रेरी की हालत खराब है. हालांकि यहां लाइब्रेरी का कमरा खुला हुआ है. चैपमैन स्कूल 1936 में स्थापित हुआ था. रविंद्र नाथ टैगोर की बेटी ने इस स्कूल की स्थापना में योगदान दिया था. उस समय के जिला कलेक्टर चैपमैन के नाम पर स्कूल का नाम पड़ा था. लाइब्रेरी में 10 हजार 700 किताबें हैं. लाइब्रेरी में कई किताबें नीचे भी पड़ी हैं.
किताबें सेल्फ में भी हैं. यहां गांधीजी की किताब सत्य के प्रयोग अंग्रेजी वाल्युम में है जो भी खराब हो रहै. इसके अलावा लंदन से छपी द न्यू पिक्चर इनसाइक्लोपीडिया भी है जिसे दीमक ने चाटना शुरू कर दिया है. स्कूल के लाइब्रेरियन मृत्युंजय ने बताया कि वर्ष 2014 में अंतिम बार किताबें खरीद हुई थी. उसके बाद कोई किताब नहीं आई है. स्कूल में 800 छात्राएं हैं लेकिन हर महीने सिर्फ 30 छात्राएं ही किताबें इश्यू कराती हैं. यहां की लाइब्रेरी में कई पुरान और धार्मिक ग्रंथ भी हैं.
जिला स्कूल मुजफ्फरपुर
शहर का सबसे बड़ा हाई और इंटर स्कूल जिला स्कूल की लाइब्रेरी में ताला लटका है. यहां के बेंच डेस्ट उठाकर नीचे रख दिये गए हैं. स्कूल की लाइब्रेरी में 10 हजार किताबे हैं. जिला स्कूल की स्थापना 1844 में हुई थी. स्कूल में ब्रिटिश प्रकाशन की कई किताबें थीं जो अब जर्जर हालत में हैं. इसके अलावा दूसरी भी कई किताबें हैं. स्कूल के उप प्राचार्य आलोक कुमार ने बताया कि लाइब्रेरी की हालत अभी ठीक नहीं है. बच्चे नहीं जाते है. लाइब्रेरियन जाकर कभी कभी किताबें पढ़ लेते हैं. बेंच डेस्क को प्रशिक्षण के लिए नीचे उतार दिया गया है.

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