पिता की परेशानी देख बेटे ने बनायी इलेक्ट्रॉनिक साइकिल, दिव्यांगों का सफर भी होगा आसान

प्रेम @ मुजफ्फरपुर अब दिव्यांगों के हाथों में साइिकल का हैंडल होगा. उनको किसी के सहारे की जरूरत नहीं होगी. वे खुद पहिये को नियंत्रित करते हुए अपनी जिंदगी को नयी दिशा दे सकते हैं. इस सपने को साकार करने की दिशा में गायघाट प्रखंड के बेरुआ निवासी पारसनाथ सिंह के पुत्र सत्येंद्र कुमार ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 21, 2019 8:43 AM

प्रेम @ मुजफ्फरपुर

अब दिव्यांगों के हाथों में साइिकल का हैंडल होगा. उनको किसी के सहारे की जरूरत नहीं होगी. वे खुद पहिये को नियंत्रित करते हुए अपनी जिंदगी को नयी दिशा दे सकते हैं. इस सपने को साकार करने की दिशा में गायघाट प्रखंड के बेरुआ निवासी पारसनाथ सिंह के पुत्र सत्येंद्र कुमार ने शानदार काम किया है. आरडीएस कॉलेज, मुजफ्फरपुर से फिजिक्स स्नातक युवक ने इलेक्ट्रॉनिक साइकिल का मॉडल तैयार किया है. इसका टेस्ट भी किया जा चुका है. इस साइकिल से दो लोग आसानी से सवारी कर सकते हैं. इसकी स्पीड क्षमता 25 से 30 किमी प्रति घंटे है. साइकिल पैडल और बैटरी दोनों से चलती है.

डीसी मोटर और बैटरी है सहारा

इस साइकिल में 250 वाट का कंट्रोलर लगाया गया है. एक ब्रुसलेस डीसी मोटर और 12-12 एंपीयर की दो बैटरी लगी है. ब्रुसलेस गियर में मोटर से साइकिल को खींचने की क्षमता है. आसानी से पुल की ऊंचाई पर चढ़ा जा सकता है. वहीं, 12 वोल्ट की दो बैटरी का सीरीज में उपयोग (थ्रोटल) एक्सीलेरेटर के तौर पर किया गया है. स्पीड को घटाने और बढ़ाने के काम आता है. एक फ्री बिल इलेक्ट्रॉनिक मोटर के लिए है और दूसरा फ्री बिल पैडल चलाने के लिए है.

साइकिल के हैंडल पर सोलर पैनल सिस्टम का उपयोग कर आसानी से बैटरी चार्ज किया जा सकता है. इस साइकिल के निर्माण में 11 से 12 हजार रुपये लागत आती है. इस साइकिल का उपयोग भविष्य में दिव्यांगों के लिए काफी कारगर साबित हो सकता है. सत्येंद्र का दावा है कि इस साइकिल के उपयोग से दिव्यांग लोगों का काम आसान हो सकता है. बिना थके एक घंटे में 25 से 30 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकते हैं.

पिता की परेशानी ने सोचने पर किया मजबूर

शहर के रामदयालु सिंह कॉलेज से फिजिक्स में स्नातक 2007-10 बैच में पढ़ाई के बाद पिता की आर्थिक परेशानी को देख कर सत्येंद्र ने साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग में संविदा के आधार बतौर कंप्यूटर ऑपरेटर काम शुरू किया. बताते हैं कि अक्तूबर 2018 में दुर्गापूजा के वक्त घर आये थे. पिताजी के घुटने में काफी दर्द था. उनको लेकर कई डॉक्टर के पास गये. लेकिन, भाड़े की गाड़ी से आना-जाना काफी महंगा पड़ रहा था, तब पिताजी स्कूटी खरीदने के लिए बोले. लेकिन, कम आमदनी के कारण बजट काफी होने के कारण स्कूटी नहीं खरीद सका. इसके बाद इलेक्ट्रॉनिक साइकिल बनाने की ठान ली.

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