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मुजफ्फरपुर आश्रय गृह कांड : ब्रजेश ठाकुर के करीबी ने सीधा आरोप नहीं होने का दावा किया

नयी दिल्ली : मुजफ्फरपुर आश्रय गृह यौन कांड के एक आरोपी ने बुधवार को यहां एक अदालत में दावा किया कि उसके खिलाफ सीधा कोई आरोप या पर्याप्त सबूत नहीं है. मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर के करीबी अश्विनी कुमार ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सौरभ कुलश्रेष्ठ के सामने यह बात कही. न्यायाधीश कुलश्रेष्ठ इस मामले में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 13, 2019 4:30 PM

नयी दिल्ली : मुजफ्फरपुर आश्रय गृह यौन कांड के एक आरोपी ने बुधवार को यहां एक अदालत में दावा किया कि उसके खिलाफ सीधा कोई आरोप या पर्याप्त सबूत नहीं है. मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर के करीबी अश्विनी कुमार ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सौरभ कुलश्रेष्ठ के सामने यह बात कही.

न्यायाधीश कुलश्रेष्ठ इस मामले में आरोप तय करने के बिंदुओं पर दलीलें सुन रहे थे. अदालत ने कुमार के वकील की दलीलें सुनने के बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 18 मार्च तय की और इस बात की पूरी संभावना है कि होली के अवकाश के बाद आरोप तय किये जायेंगे. कुमार बतौर डॉक्टर ठाकुर के एनजीओ ‘सेवा संकल्प और विकास समिति’ से जुड़ा था और वह आश्रय गृह में लड़कियों के यौन उत्पीड़न से गुजरने से पहले उन्हें कथित रूप से नशीली दवा वाली सूई लगाता था.

कुमार के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल के खिलाफ बलात्कार या यौन हमले का स्पष्ट आरोप नहीं है अतएव उसके खिलाफ खासकर भादसं और पोक्सो कानून की कठोर धाराओं के तहत कोई आरोप तय नहीं किया जाये. वकील ज्ञानेंद्र मिश्रा ने बताया कि अदालत ने जांच एजेंसी को भी निर्देश दिया कि गवाहों को पांच पांच के बैच में लाया जाये.

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अदालत ने बिहार के पुलिस महानिदेशक को गवाहों को दिल्ली लाये जाने में सभी सहयोग प्रदान करने का निर्देश दिया. इस कांड के सभी आरोपियों ने सीबीआई द्वारा उन पर लगाये गये आरोपों से इन्कार किया है और कहा कि उन पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं. सीबीआई ने इससे पहले अदालत में दावा किया था कि इस आश्रय गृह में कई लड़कियों पर यौन हमला किया गया और आरोपियों के खिलाफ धारा 375 (बलात्कार) समेत भादसं और पॉक्सो की विभिन्न संबंधित धाराओं के तहत आरोप लगाये गये हैं.

बिहार के मुजफ्फरपुर में एनजीओ द्वारा संचालित आश्रय गृह में कई लड़कियों के साथ कथित रूप से बलात्कार किया गया था और उन पर यौन हमला किया गया था. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की रिपोर्ट के बाद यह मुद्दा सामने आया था. सात फरवरी को उच्चतम न्यायालय ने प्रशासन को इस मामले को बिहार से दिल्ली के साकेत जिला अदालत परिसर की बाल यौन अपराध सुरक्षा (पोक्सो)अदालत में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था. इस अदालत को रोजाना आधार पर सुनवाई कर छह महीने के अंदर इस मामले का निस्तारण करना है.

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