23.9 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

मुजफ्फरपुर : ऑक्सफोर्ड विवि की तर्ज पर बने लंगट सिंह काॅलेज स्थित वेधाशाला का अस्तित्व समाप्ति की ओर

मुजफ्फरपुर : ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की तर्ज पर बने लंगट सिंह कॉलेज परिसर में 100 वर्ष से भी पहले स्थापित वेधशाला एवं तारामंडल अपना अस्तित्व लगभग खो चुके हैं. वेधशाला की स्थापना 1916 में हुई थी और उपकरण इंग्लैंड से मंगाये गये थे. आज की तारीख में इसके कई उपकरण खत्म हो गये और कुछ चोरी […]

मुजफ्फरपुर : ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की तर्ज पर बने लंगट सिंह कॉलेज परिसर में 100 वर्ष से भी पहले स्थापित वेधशाला एवं तारामंडल अपना अस्तित्व लगभग खो चुके हैं. वेधशाला की स्थापना 1916 में हुई थी और उपकरण इंग्लैंड से मंगाये गये थे. आज की तारीख में इसके कई उपकरण खत्म हो गये और कुछ चोरी हो गये हैं.

इस वेधशाला एवं तारामंडल के बारे में पूछे जाने पर लंगट सिंह कालेज के प्राचार्य डा. ओपी राय ने ‘भाषा’ से कहा, ‘‘हमने बिहार सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग को पत्र भेज इसे चालू कराने का आग्रह किया है.” उन्होंने कहा कि पिछले दिनों राज्य के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री जय कुमार सिंह से इसे बहाल करने के बारे में आग्रह किया गया. नयी तकनीक से विरासत को सहेजते हुए आधुनिक तारामंडल का निर्माण हो सकता है. कॉलेज के मुख्य भवन के सामने स्थित यह वेधशाला पिछले करीब चार दशकों से बंद है.

देश की प्राचीनतम वेधशालाओं में शामिल इस वेधशाला के लिए, कई उपकरण चोरी हो जाने के कारण जरूरी कलपुर्जे भी नहीं मिल रहे हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर एवं देश की वेधशालाओं पर शोध करने वाले जेएन सिन्हा ने बताया कि 1500 वर्ष पहले महान खगोलविद् आर्यभट्ट ने तरेगना कस्बे में वेधशाला बनायी थी और तरेगना से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लंगट सिंह कालेज में बनी एक प्राचीन वेधशाला अपना अस्तित्व खो चुकी है.

जेएन सिन्हा ने कहा कि यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि लंगट सिंह कालेज से डा. राजेन्द्र प्रसाद, जे बी कृपलानी, रामधारी सिंह दिनकर, आईजे तारापोरवाला, डब्ल्यू डी स्मिथ और एचआर घोषाल जैसे महापुरुषों के नाम जुड़े हैं. महात्मा गांधी चंपारण सत्याग्रह के दौरान यहां ठहरे थे. इस वेधशाला ने 80 के दशक में काम करना बंद कर दिया था. 1995 में वेधशाला के कुछ उपकरण चोरी हो गये जिसके बाद इसे सील कर दिया गया. यह बिहार का पहला एवं देश के गिने चुने प्राचीनतम तारामंडल में से एक है जो किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी परिसर में स्थित हैं.

कॉलेज के रिकार्ड के अनुसार, फरवरी 1914 में काॅलेज के प्रोफेसर रोमेश चंद्र सेन ने खगोलीय वेधशाला स्थापित करने के लिये पश्चिम बंगाल के बांकुरा के वेसलियन कालेज के तत्कालीन प्राचार्य जे मिटचेल से विचार विमर्श किया था. इसके बाद कालेज ने 1915 में इंग्लैंड से एक टेलीस्कोप, वस्तुओं को देखने संबंधी चार इंच का ग्लास, डेढ इंच का फाइंडर एवं कुछ अन्य उपकरण खरीदे. इसके अलावा खगोलीय घड़ी एवं क्रोनोग्राफ भी खरीदा गया.

इस वेधशाला ने 1916 से काम शुरू किया और तब प्रो. मिटचेल ने कालेज को बधाई देते हुए इस विषय पर शोध कार्यो को साझा करने का आग्रह किया. इसके बाद वेधशाला को बेहतर बनाने के लिये 1919 में सर्वे आॅफ इंडिया से भी सहयोग किया गया. इसके बाद काॅलेज के लिये कुछ अन्य उपकरण भी खरीदे गये. लेकिन, यह सिलसिला आगे जा कर रूक गया. कुछ उपेक्षा और उदासीनता इस कदर हावी हुई कि वेधशाला ने 80 के दशक में काम करना बंद कर दिया था. 1995 में वेधशाला के कुछ उपकरण चोरी हो गये जिसके बाद इसे सील ही कर दिया गया.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें