लीची नहीं, गर्मी-कुपोषण चमकी की वजह : 1995 से चल रहा है बिहार में मानसून पूर्व बच्चों की मौत का सिलसिला
सरकारी लापरवाही के कारण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज का अभाव एम्स के विशेषज्ञों ने भी ‘चमकी’ को प्री मानसून इंसेफेलाइटिस कहा पटना /कोलकाता : देश-विदेश में प्रसिद्ध मुजफ्फरपुर की लीची एक बार फिर से सुर्खियों में है, लेकिन अपने रसीले स्वाद के लिए नहीं, बल्कि चमकी बुखार के कारण. गौरतलब है कि इस चमकी […]
तीन व चार जुलाई को इस टीम ने मुजफ्फरपुर के आस-पास इस बीमारी से प्रभावित गांवों में रह कर वस्तुस्थिति का जायजा लिया. इस बारे में मेडिकल टीम के प्रमुख डॉ विप्लव चंद्रा ने बताया, ‘हमारी टीम ने बिहार दौरे पर सबसे पहले तो सिलौट, बिशनपुर, किशनपुर सेठ, मदीपुर, प्रह्लादपुर, सबहापुर, रतौनिया गांवों का दौरा किया. वहां पीड़ित बच्चों के परिवारों से हमने मुलाकात की. करीब 181 बच्चों का इलाज किया, जिससे यह पता चला कि बच्चों की मौत गर्मी व कुपोषण से हुई है, क्योंकि इसके कारण उन बच्चों के शरीर में माइटोकांड्रिया (कोशिका का ऊर्जा गृह) क्षतिग्रस्त हुई थी.
माइटोकांड्रिया के प्रभावित होने से बच्चों के शरीर में शुगर लेबल घट कर 20 से 40 तक पहुंच गया था और मेटाबॉलिज्म भी प्रभावित हुई, जिससे बच्चों के मल्टीपल ऑर्गन जैसे किडनी, लीवर व मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया. डॉक्टर ने बताया कि इस बीमारी के लिए लीची जिम्मेवार नहीं, बल्कि गर्मी, आर्द्रता और कुपोषण प्रमुख कारण है. क्योंकि मानसून से पहले ही मुजफ्फरपुर और आस-पास के गांवों का तापमान 45 से 46 डिग्री तक देखा गया है. सबसे चैंकानेवाली बात यह है कि चमकी बुखार से प्रभावित गांव के 90 फीसदी घरों में वेंटिलेशन की भी व्यवस्था नहीं है. घर में खिड़की भी नहीं है. एम्स के विशेषज्ञों ने चमकी बुखार को प्री मानसून इंसेफेलाइटिस नाम दिया है.