कनाडा में वैज्ञानिक बना सरैया का संतोष
मुजफ्फरपुर: शहर के मझौलिया रोड निवासी विपिन कुमार सिंह के पुत्र 36 वर्षीय डॉ संतोष कुमार ने ब्रांडॉन रिसर्च सेंटर – एग्रीकल्चर एंड एग्री फूड (एएएफसी) कनाडा में विश्व के 47 देशों के 200 वैज्ञानिकों को पीछे छोड़ रिसर्च साइंटिस्ट के पद को हासिल कर देश का नाम रोशन किया है. रिसर्च साइंटिस्ट के दो […]
मुजफ्फरपुर: शहर के मझौलिया रोड निवासी विपिन कुमार सिंह के पुत्र 36 वर्षीय डॉ संतोष कुमार ने ब्रांडॉन रिसर्च सेंटर – एग्रीकल्चर एंड एग्री फूड (एएएफसी) कनाडा में विश्व के 47 देशों के 200 वैज्ञानिकों को पीछे छोड़ रिसर्च साइंटिस्ट के पद को हासिल कर देश का नाम रोशन किया है.
रिसर्च साइंटिस्ट के दो पद थे. दूसरा पद कनाडा के ही एक वैज्ञानिक को प्राप्त हुआ. डॉ संतोष के रिसर्च पर कोर फंडिंग के तहत कनाडा सरकार का प्रति वर्ष 500 हजार डॉलर खर्च होंगे. फिलहाल संतोष सिलियक डिजिज के मरीजों के लिए ग्लूटेन फ्री गेहूं की खोज में जुटे हैं. उनका दो शोध प्रोजेक्ट जल्द पूरा होने वाला है जिसे फरवरी महीने में ब्रांडॉन रिसर्च सेंटर के कनाडियन ह्वीट डेवलपमेंट कमेटी में पेश करेंगे. यदि वह पास हुआ तो बीडब्ल्यू 483 व 484 के नाम से दुनिया के सामने होगा.
ऐसे आगे बढ़े कदम : संतोष की प्राथमिक शिक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय, खरौना (मुजफ्फरपुर) से हुई. यहां से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद पंजाब कृषि विवि से 2002 में कृषि स्नातक और 2004 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आइएआरआइ) दिल्ली से प्लांट फिजियोलॉजी में स्नातकोतर की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद वे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नयी दिल्ली से फेलोशिप मिलने पर चार साल तक तीसी के ऊपर जेनोमिक्स और बायो इनफॉर्मेटिक्स पर रिसर्च किया.
इसके सफल समापन के बाद 2010 में कनाडा के मैनीटोबा यूनिवर्सिटी से पीएचडी (प्लांट साइंस) की. उनके गाइड प्लांट साइंस के डॉ. रॉबर्ट हेयर थे जिन्होंने पौधों में हीमोग्लोबीन की खोज की थी.
परिजनों में खुशी की लहर : डॉ. संतोष की इस उपलब्धि पर उनके सेवा निवृत्त पिता विपिन कुमार सिंह काफी प्रसन्न हैं. वहीं संतोष के चाचा एवं रेलवे ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, मुजफ्फरपुर के शिक्षक विजय कुमार सिंह बताते हैं कि बचपन से ही संतोष में विलक्षण प्रतिभा झलक रही थी. उसने अपनी मेहनत पर वाकई एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है. उन्होंने यह बताया कि संतोष ने ‘रोल ऑफ बायोइन्फार्मेटिक्स इन एग्रीकल्चर’ नाम की किताब भी लिख चुके हैं जिसे न्यूयार्क के टेलर इन फ्रांसिस प्रकाशन ने 2013 में प्रकाशित किया. वे प्राथमिक लेखक के रूप में एक दर्जन से अधिक इंटरनेशनल जर्नल में भी प्रकाशित हो चुके हैं.
चार स्टेट में शोध प्रयोग
डॉ. संतोष किसानों के लिए रोग मुक्त, कीटाणु मुक्त व ज्यादा उपज देने वाले गेहूं की वेराइटी को लाने के लिए कनाडा के मैनीटोबा, अलब्रेटा व सिसकैचवान तथा न्यूजीलैंड के फार्म पर शोध प्रयोग कर रहे हैं. वे बताते हैं कि फरवरी महीने में गेहूं की दो नयी वेराइटी बीडब्ल्यू 483 व 484 को ब्रांडॉन रिसर्च सेंटर में पेश करेंगे. वहीं 2016 के फरवरी में भी एक नयी वेराइटी तैयार हो जायेगी.
कनाडियन व्हीट डेवलपमेंट कमेटी नयी वेराइटी की गुणवत्ता एवं गुण-दोषों पर विचार-विमर्श कर जब इसे अनुमोदित कर देगी तब उसे दुनिया के सामने उत्पादन के लिए लाया जा सकेगा. भारत में एएएफसी का कोलाब्रेशन पंजाब कृषि विवि और आइएआरआइ से है.